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Monday, October 17, 2011

अनजाना सा रिश्ता (part 5)

सिया के घर कुछ दिनों बाद

सिया के घर जा कर जब मैंने माँ और पापा को वहां देखा तो मुझे पता चला की सिया के पापा और मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त थे.....वो लोग कॉलेज में एक साथ पढते थे...और कई बार सिया के माँ-बाप हमारे घर और हम सभी भी उनके घर खाना खाने आते जाते रहे है.....मैं और सिया बहुत छोटे थे तभी सिया के पापा ने पुराना शहर छोड़ कर यहाँ दुसरे शहर आ बसे थे.....

यहाँ सिया और उसकी माँ का बुरा हाल था......दो-तीन दिन तो रोना धोना...खाना न खाना....दोनों एक दुसरे को देखते ही रो पड़ती थी...सिया का भाई छोटा था मगर जितना हो सकता सँभालने की कोशिश कर रहा था.....इसलिए मुझे और मेरे पापा को सब देखना पड़ रहा था.....क्यूंकि सिया के पापा का रिश्तेदार कहने को कोई नहीं था... यहाँ हमें बहुत दिन हो गए थे....और हम वापस जाने की तैयारी कर ही रहे थे....की सिया का भाई मेरे पास आया..."भैया...आप दीदी को अपने साथ ही ले जाओ...मैं उनको नहीं संभाल पाउँगा...माँ को तो जैसे तैसे मैं और पडोसी संभाल लेंगे..."

"हर्ष मैं वापस कॉलेज जा रहा हूँ....क्यूंकि कॉलेज में तो छुट्टियाँ भी हो गयी होंगी...हम लोगो को कहीं और जाना है....किसी और शहर.....शायद सुहाना कॉलेज जाये...उसके साथ सिया चली जाएगी..." मैंने हर्ष को मायूस कर दिया...

"सुहाना दीदी भी कॉलेज नहीं जा रही....मैंने उनसे पहले ही पुछा...." हर्ष ने कहा...."कोई बात नहीं बेटा...हम सिया को अपने साथ ले चलते है..." पापा ने हर्ष को कहा...वो कमरे के बाहर दरवाजे पे खड़े थे..."मगर पापा...हम तो...घर नहीं जा रहे.....तो सिया को अपने साथ ले जाना ठीक रहेगा.." मैंने पापा से पुछा...

"कोई बात नहीं पियूष....तुम्हारी मम्मी और मैं सिया को संभाल लेंगे....बहुत प्यारी बच्ची है....शायद हमारे साथ वहां जा के बच्ची का मन शांत हो जाये.....यहाँ तो बदहाल हो जाएगी...बार बार अपने पापा को याद करती रहेगी..बार बार उसे अपनी जिद....एक गलती लगेगी...उसने आगे पढने की जिद की थी...कोई गुनाह नहीं...वो अपने पापा की नारजगी को उनके मौत की ज़िम्मेदार समझ रही है...इस माहोल से बाहर जाएगी तो शायद सब भूल जाए...सही सोच की ज़रुरत है उसे..." पापा ने जैसे ही बात ख़त्म की वैसे ही हर्ष ने उनको थैंक्स कहा...

स्टेशन पे खड़े ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे....मैंने सिया की तरफ देखा....जैसे उसे कुछ होश ही नहीं था...वो कहाँ जा रही है...किसके साथ जा रही है.....तभी सिया की माँ ने मुझसे कहा..."बेटा ध्यान रखना उसका....डॉक्टर ने कहा है उसे इस माहोल से दूर ले जाने को...वरना उसे depression हो सकता है.....वो बचपन से ही ऐसी है....छोटी छोटी बातों पे मायूस हो जाती है....और सोचते सोचते.....गहरी नकारात्मक सोच में चली जाती है....." मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था...मैं ऐसी सिया को नहीं जानता....मैं तो एक चंचल और आत्मविश्वास से भरी सिया को ही जनता हूँ...हमेशा खुश रहने वाली....बिंदास कभी भी कुछ भी बोल देने वाली....मुझे tease करने वाली....पिछले दिनों सिया का अलग ही रूप देखने को मिला मुझे.....बिंदास गर्ल से मायूस सदमे में सहमी सिया.....खुद को सबसे काटके अलग रखने वाली सिया.....अपने अंदर ही अंदर गम में डूब जाने वाली सिया...मुझे अपनी सिया वापस चाहिए थी....वो ही सिया जो उस ट्रिप से पहले थी....मेरी दोस्त...मेरी काल्पनिक दुनिया मेरी गर्लफ्रेंड.....

हम ट्रेन में बैठ गए...और सबने हमें विदा किया...ट्रेन चलने लगी.....सिया को अचानक पता नहीं क्या हुआ..वो अपनी सीट से उठ कर वापस ट्रेन के दरवाजे की ओर भागने के लिए लपकी....मैंने उसको पकड़ लिया....वो जोर जोर से रो रही थी...और बोल रही थी.."नहीं पापा..मुझे नहीं जाना..मैं यहीं रहूंगी आपके पास हमेशा...यहीं...मुझे नहीं पढना आगे..नहीं करना कोई बिज़नस...." बार बार बोलती जा रही थी...मैंने उसे झटके से ट्रेन की बर्थ पर बिठाया....पापा ने उसके मुह पे पानी की छीटें दी....माँ ने संभाला...अपने अंचल से मुह पुछा...और अपनी गोद में उसका सर रखा...प्यार से सहलाया.....जब जाके वो शांत हुई और हमारी जान में जान आई...

करीब 1 दिन के बाद हम अपनी मंजिल तक पहुचे...माहि, पीहू और माहि के माँ-बाप हमारा स्टेशन पर ही इंतज़ार कर रही थी.....वो लोग एक दिन पहले ही यहाँ आ गए थे....माहि ने मेरा गिफ्ट किया हुआ टॉप और स्कर्ट पहनी हुई थी...उसने हमेशा की तरह थोडा makeup भी किया हुआ था..... मैं माहि को इतने दिनों बाद देख कर बहुत खुश हुआ......माँ और पापा ट्रेन से सामान उतारने लगे.....मैं उनकी मदद करने लगा..तो पापा ने कहा..."तुम सिया को संभालो..."....मैं सिया को सँभालते हुए ट्रेन से उतारा...माहि ने माँ-पापा के पैर छूए और मेरी ओर देखने लगी.....लेकिन सिया को मेरी बाँहों में देख उसके चेहरे पे मायूसी सी छा गयी....और कई सवाल भी....माँ-पापा उसके सवालों को समझ गए और सभी कुछ विस्तार से बताने लगे.....जब तक मैंने सिया को cab में बिठाया....फिर मैंने और पीहू ने सामान रखा....और हम सब बैठ कर होटल की ओर चल दिए......

रात के खाने के बाद मैं माहि के कमरे में गया..."Oo माहि...मत पूछो मैंने तुमको कितना miss किया.....मैं तुमको देख कर कितना खुश हूँ....मिलके कितना खुश हूँ.....एक बार गले लगा लो यार..." मैं माहि की तरफ बढ़ा...."रहने दो मुझे पता है कितना याद किया मुझे तुमने..इतने दिनों से ना फ़ोन न कोई sms .....मैं ही पागल हूँ जो तुमको फ़ोन करती रहती हूँ...सोचा कुछ दिन हम सब पूरा परिवार साथ रहेगा....लेकिन नहीं उस सिया को भी साथ ले आये...."...माहि ने शिकायत की...."पर यार पापा ने बताया तो तुमको....वहां क्या माहोल था....कैसे फ़ोन करता....वहां सब शौक सभा में थे...वहां से कैसे...और सिया की हालत बताई तो तुम्हे..और तुम देख भी रही हो...कैसे मुरझा सी गयी है..." मैंने कहा..."पियूष हम यहाँ मौज मस्ती करने आये है..एक पारिवारिक छुट्टियाँ मनाने...अब उसकी मायूस सूरत देख कर हम क्या मौज मस्ती कर पाएंगे....मेरे माँ-पापा को भी अच्छा नहीं लगा तुम लोगो का उसे साथ में लाना..हमने क्या क्या प्लान बनाये थे...सब किरकिरा कर दिया..."..

"अच्छा...क्या क्या प्लान बताओ तो....मैं भी तो सुनु... "मैंने माहि की कमर में अपनी बाहें डाल दी और उसे कस के पकड़ के पुछा...तो वो खिलखिला के हंस दी.....तभी कमरे के बाहर दस्तक हुई...."भैया नाश्ता तैयार है....आ जाइये माँ-पापा के कमरे में..." पीहू ने बाहर से आवाज़ लगा के बताना ठीक समझा...अच्छा हुआ वो सीधा अंदर आके नहीं बोली वरना हमें ऐसे देख लेती तो..मैं तो वहीँ पानी पानी हो जाता....

दोपहर के खाने तक सभी ने अपनी थकन उतार ली थी.....और सभी माँ-पापा के कमरे लंच करने आये...सिया भी बेहतर लग रही थी....वो पीहू के साथ उसके कमरे में रही थी....ज़रूर पीहू की मीठी मीठी बातों का असर हुआ होगा उस पर....पीहू ने उसे अच्छे से संभाल लिया था.....अब सिया हाँ और ना का जवाब भी दे रही थी....सिया माहि से मिली भी...जैसा वो हमेशा से माहि से मिलना चाहती थी.....मैं सिया से पूछना चाहता था की उसे माहि कैसी लगी.....जब सिया सबसे अलग होके एक खिड़की के बाहर देख रही थी तो मैंने मौका देखते ही उसकी तरफ जा के उस से पुछा..."तो..कैसी लगी मेरी दूसरी girlfriend को मेरी पहली वाली girlfriend .." सिया कुछ नहीं बोली बस मेरी ओर देखती रही...."अरे मैं पूछ रहा हम तुमको माहि कैसी लगी...है ना मेरी पसंद लाजवाब" मैंने फिर से पुछा......"हम्म्म्म.....अच्छी है....तुम्हारे टाइप की लड़की है..." सिया का इतना ठंडा जवाब मुझे अच्छा नहीं लगा...मगर मैं समझ सकता हूँ वो अभी थोड़ी उदास है....तो मैंने अपनी बातों में लगाने के लिए बोला.."कितनी अजीब बात है ना हमारे माँ-बाप भी एक दुसरे को पहले से जानते थे...इसका मतलब हम पहले भी मिल चुके है बचपन में...शायद एक साथ खेले भी हो...किसे पता था हम एक बार फिर मिलेंगे इतने सालों बाद किसी कॉलेज में" मैंने सबकी तरफ देखते हुए अपना वाक्य पूरा किया....तो मेरी नज़र माहि पे पड़ी जो इसी तरफ देख रही थी.....मैं उसको देख कर मुस्कुरा दिया....मगर माहि ने मुझ से मुह फेर कर मेरी माँ की ओर कर लिया...

सिया ने हमारी इन् हरकतों को शायद देख लिया "मुझे लगता है हमें सबके साथ बैठना चाहिए.." सिया बोलती हुई सबकी ओर चल दी....अजीब है...क्या ये मुझसे नाराज़ है...या फिर मैंने कुछ गलत बोल दिया.....शायद माँ-बाप वाली बात से उसे उसके पापा की याद आ गयी...मैं क्यूँ उसे खुश नहीं कर पा रहा हूँ...पहले तो वो मेरी हर बात पर हंस देती थी...शायद मुझे कोई joke ही बोलना चाहिए था.....

सभी लोग ज्यादा से ज्यादा कोशिश कर रहे थे की सिया को उसके पापा की याद ना आ जाए.....मेरे माँ-पापा ने सबको पहले ही बोल दिया था की सिया के पापा या उसके परिवार के बारे में कोई बात नहीं करेगा...यहाँ वहां की बातें हो रही थी......मेरी माँ मेरी और माहि की शादी के बारे बात कर रही थी....कब क्या...और क्या-क्या कैसे होगा...शादी की तारीक.....जैसे माँ का यह पसंदीदा विषय था बात करने का...पर इस बार मुझे बुरा नहीं लग रहा था...क्यूंकि मेरी शादी माहि से हो रही थी....बिलकुल मेरे मन मुताबिक और मेरे ही कहने पे होगी....जब मैं चाहुगा...कोई जल्दी नहीं....."तो बेटा बस एक साल ही रह गया है पढाई का फिर तो नौकरी लग जाएगी...उसके बाद हम शादी की तारिख निकाल ले ना कोई दिक्कत तो नहीं...".....माहि के पापा ने मुझसे पुछा....मगर जवाब झट से मेरी माँ ने दिया..."हाँ हाँ बिलकुल नौकरी लगते ही शादी की तैयारी शुरू कर लेना भाई साहेब....इसमें पूछने की क्या बात है...माहि को भी तो जल्दी होगी...क्यूँ माहि ठीक है ना...तुम तो नयी नयी ट्रेंड की designer dresses पहनोगी हैं ना"...

"मगर माँ.....नौकरी लगते ही......माँ मुझे थोडा वक़्त और चाहिए होगा....नौकरी लगने के कुछ साल तो....या फिर कम से कम एक साल तो चाहिए होगा...ताकि पक्की नौकरी होने के बाद ही शादी हो...."मैं माँ से बोला...
"श्श्शश्श्श...मैं अब तेरी एक नहीं सुनने वाली....तुने MBA करने के लिए टाइम माँगा था...सो हमने दिया..अब कोई बहाना नहीं...नौकरी तो एक न एक दिन पक्की हो ही जाएगी...." माँ की दादागिरी फिर शुरू हो गयी थी....और यहाँ वो अकेली नहीं थी.....माहि के माँ-पापा भी थे...उनका साथ देने को....इसलिए मैंने और पापा ने चुप रहना ही ठीक समझा...कुछ देर बातें करने के बाद सब बड़ों को छोड़ कर सभी अपने कमरों में चले गए.....

बाकी का दिन माहि और मैंने एक साथ उसके कमरे में बिताया...खूब सारी बातें की...और रात के खाने के बाद मैं अपने कमरे में चला गया...और थोड़ी देर बाद मेरे कमरे के दरवाजे पे दस्तक हुई....मैंने दरवाजा खोला तो माहि खड़ी थी.....माहि कमरे में अंदर पहुँच कर बोली.."तुम शादी से इतना डरते क्यूँ हो"... "नहीं ऐसा कुछ नहीं है...शादी से क्या डरना..बल्कि शादी के बाद तो तुम हमेशा के लिए मेरी हो जाओगी....बस मैं अभी जिम्मेदारियां नहीं संभाल सकता...पहले कुछ बन जाऊ....अच्छा ख़ासा कमाने लग जाऊ.....की तुमको खुश रख सकूँ...बस फिर हम शादी कर लेंगे...." उसे अपनी बाँहों में भरते हुए मैंने कहा...

"पहले ठीक था...हम एक दुसरे को अच्छे से नहीं जानते थे...फिर सगाई के बाद हम एक दुसरे को और अच्छे से जान चुके है...हाँ बस एक ही पर्दा रह गया है हमारे बीच....जिसे भी तुम नहीं तोडना चाहते....बल्कि मुझे ऐतराज़ होना चाहिए...मुझे लगता है हमें रिश्ते के अगले पड़ाव की ओर जाना चाहिए....तुम एक-दो साल और क्यूँ मुझसे दूर रहना चाहते हो...मुझसे अभी भी प्यार तो करते हो ना"

"क्या बोले जा रही हो...तुमसे प्यार किया है हमेशा...भूलो मत तुम मेरा पहला प्यार हो...." हाँ मैंने माहि को सब बता दिया था..कैसे मैं उसे छुप-छुप कर देखा करता था...कुनाल की खिड़की से...

"हाँ वो पहला पहला प्यार जो कभी किसी को नहीं मिलता...पियूष मैं अब और इंतज़ार नहीं कर सकती..." माहि मुझे बिस्तर पर धक्का दे कर बोली...और खुद भी मुझ पर गिर गयी...."मैं जानता हूँ इंतज़ार तो मैं भी नहीं कर सकता पर..क्या करू...मैंने हमेशा से सोचा है एक अच्छी नौकरी ..फिर अच्छी कमाई..फिर ही अच्छी बीवी और अच्छा सा घर...और अच्छे से बच्चे...समझा करो...practical होना ही आजकल की मांग है...और जिस परदे की बात कर रही हो......वो शादी के बाद ही खुले तो अच्छा है...जितना इतेज़ार करेंगे...उतना ही फल मीठा मिलेगा.....शादी के बाद हम उतना ही खुश रह पाएंगे...एक दुसरे की नज़रों में उतना ही सम्मान और आदर-सत्कार बना रहेगा...शादी से पहले हमें अपनी प्रतिष्ठा नहीं खोनी चाहिए..."......

"ठीक है Mr practical....इतना lecture मत दो....जैसा तुम कहो...मेरी तो तुम सुनने वाले हो नहीं....मैं कोशिश भी क्यूँ कर रही हूँ"

"मुझे लगता है अब तुम्हे अपने कमरे में जाना चाहिए..रात हो गयी है..और सुबह हमें जल्दी उठ कर घुमने भी तो जाना है सबको साथ लेकर...."....
"हाँ हाँ रात हो गयी है मुझे पता है....चली जाउंगी.....if you don't  mind मैं तुम्हारा restroom use कर लूं...."
"हाँ जानू..इसमें पूछने की क्या ज़रुरत है...जो कुछ है सब तुम्हारा ही तो है..." और वो बाथरूम में चली गयी...थोड़ी देर बाद उसका मोबाइल बजा..उसमें कोई SMS आया था....."जानू तुम्हारा फ़ोन...कोई SMS है.."....मैं उसका मोबाइल उठा ही रहा था की गलती से मेरी उंगली उस पर लग गयी और SMS खुल गया.....मैं पढना नहीं चाहता था....पर कुनाल का नाम देख कर मैं रुक गया...और पढने लगा..

"तुम कहो तो मैं आ जाता हूँ....दिन में तुम उसके साथ घूमना...रात को मेरी बाँहों में झुलना...जैसे सालों से झूलती आ रही हो...तुम्हारे साथ बिताई रातें मैं कभी नहीं भूलूंगा न तुमको कभी भूलने दूंगा....तुम्हारे साथ बिताया एक एक पल....एक एक रात....उफ्फ्फ्फ़....मैं हर वक़्त आने वाली उन् रातों के बारे में सोचता रहता हूँ जब तुम फिर होगी मेरी बाँहों में ....तुम बस बताओ या इशारा करो  कब और कहाँ..."


to be continue....
~'~hn~'~

Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

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