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Monday, November 14, 2011

इंतज़ार

दोस्तों मैं जानती हूँ की आप लोग मुझे और मेरे ब्लॉग को बहुत प्यार करते है....और आप सब मेरे मन में अक्सर आने वाले कुछ नकारात्मक विचारों से भी अवगत होंगे...मेरे कुछ पोस्ट में आपको अक्सर महसूस होता होगा...जो की सच है....क्यूंकि जब में ज्यादा उदास होती हूँ....ज्यादा सोचती हूँ....तभी एक नयी रचना कर बैठती हूँ....आज कुछ ऐसे ही विचार मेरे मन में आ रहे है....आप लोगो के साथ बाँटना चाहती हूँ...

इंसान की ज़िन्दगी बस 60-70 साल ही होती होगी....और मैं जैसे-जैसे 30 के पास आती जा रही हूँ...तो मुझे मेरी बीती ज़िन्दगी का विश्लेषण करने का मन हुआ...और मैंने पाया की मेरी 30 साल की ज़िन्दगी में मैंने बहुत कुछ पाया है...बहुत कुछ खोया भी है...माँ की कोख छोड़ी तो मासूम बचपन पाया....जब बचपन खोया तो लड़कपन पाया...लड़कपन के जाते ही खूब सारी समझ लिए जवानी आ गयी...
सच में तोतलाना सीखा तो किलकारियां कहीं घूम सी गयी....और जब अच्छे से बोल चाल आ गया तो तोत्लाहत भी जाती रही...तोलमोल के...सोच समझ के बोलना सीखा तो सारी मासूमियत और अल्हड़पन भी जाता रहा....

जानती हूँ अभी बहुत कुछ आगे है मेरी ज़िन्दगी में...अभी आधा ही सफ़र तय हुआ है...मगर फिर भी दोस्तों यह तो सच है की कुछ पाया तो कुछ खोया...मगर पाया बहुत इंतज़ार के बाद...इंतज़ार का फल बहुत मीठा होता है..यह तो सभी कहते है...मगर जब किसी को सच में लम्बे इंतज़ार के बाद कुछ मिलता है तो वही जानता है जो उसे मिला उसकी क्या एहमियत है उसके लिए...बच्चा इस दुनिया में आने से पहले भी 9 महीने इंतज़ार करता है...उसे नयी ज़िन्दगी मिलती है.....मगर 60-70 सालों बाद यही ज़िन्दगी उसे छोडनी पड़ती है....मौत यही तो है ज़िन्दगी का आखरी पड़ाव....इसका इंतज़ार भी हम ज़िन्दगी भर जी-जी कर करते है...सच में अब तो मैं यही पूछती हूँ.....

मेरी ज़िन्दगी क्या है?,
बस एक इंतज़ार,
एक लम्बा इंतज़ार....

9 महीने की कोख के बाद,
मेरी पहली किलकार,
जैसे हो संघर्ष की ललकार...

5 साल बोल-चाल की कुदरती सीख,
फिर सीखा शिष्टाचार,
जो है जीवन का आधार...

लम्बी किताबी शिक्षा ले कर ही,
बन पायी होनहार,
फिर भी हूँ बेरोजगार...

बचपन से अभी तक सपनो में देखा,
सपनो का राजकुमार,
जिससे होगा मेरा घर-संसार...

सपने है अभी इस जैसे और कई,
पूरे होने को बेक़रार,
है किस्मत पे ऐतबार...

28 सालों की इंतज़ार की घड़ी चलेगी, 
और कितने साल लगातार,
इसके रुकने का है बस इंतज़ार...

अभी तक की मेरी ज़िन्दगी,
आधा-अधूरा इंतज़ार,
क्या पूरा होगा ये इंतज़ार...

~'~hn~'~

Thursday, March 31, 2011

पर डरती हूँ

तरसती आँखों ने थे देखे हजारो सपने
पर डरती हूँ कहीं वो टूट न जाए,
इंतज़ार में हूँ एक हमसफ़र के साथ का
पर डरती हूँ कहीं साथ छूट न जाए॥

अंधेरों में बैठी हूँ रौशनी की आस लिए
कोई सूरज बन कर आए अँधेरा दूर भगाए,
अंधेरों की तो आदत हो गयी है हमे
पर डरती हूँ कहीं फिर वो सूरज डूब न जाए॥

तरसती आँखों ने थे देखे हजारो सपने.......

किनारे पे खड़ी साहिल को निहारती हूँ
कि काश कोई मुझे उस पार ले जाए,
साथ मेरे माझी भी है और नाव भी
पर डरती हूँ बीच भँवर डूब ना जाए॥

तरसती आँखों ने थे देखे हजारो सपने.......

रूठी है किस्मत रूठा है सारा जहाँ
हम है जिसके सहारे न जाने वो है कहाँ,
जाना चाहती हूँ उसके पास हमेशा के लिए
पर डरती हूँ कहीं वो भी रूठ न जाए॥

तरसती आँखों ने थे देखे हजारो सपने.......

हजारों सपने करोड़ों ख्वायिशें
अनगिनत अरमानो और प्यार का खजाना,
कितना है संजोया रखा छिपा कर सालो से
पर डरती हूँ कहीं यह खजाना लूट न जाए॥

तरसती आँखों ने थे देखे हजारो सपने
पर डरती हूँ कहीं वो टूट न जाए,
इंतज़ार में हूँ एक हमसफ़र के साथ का
पर डरती हूँ कहीं साथ छूट न जाए॥ 
~'~hn~'~

आख़िर क्यों

क्यों आज इंसान खुद ही एक वेहेशी जानवर बन गया है।
क्यों वो आज भी मज़हब के नाम पे लड़ता रह गया है॥
क्या सच में यहाँ कोई मुस्लिम या कोई हिन्दु रह गया है।
क्या एक दुसरे को मारना काटना धर्म का मतलब यही रह गया है॥
क्या यह गीता में लिखा है,
कि जो हिन्दू है वही इंसान रह गया है।
क्या यह कुरान में लिखा है,
कि मुस्लिम कौम ही बस एक मज़हब रह गया है॥
क्या इस्सू मसि ने यह कहा है,
कि रोटी की जगह गोलियाँ ही बांटना रह गया है।
क्या गुरु नानक ने सिखाया है,
कि दुसरे के घर घुस वहां दहशत बचाना रह गया है॥
कितना कत्ले आम किया अब तो लड़ना छोडें हम,
अब एक दुसरे को फिर से गले लगना रह गया है।
शान्ति बनाये एकजुट हो जाए एक मानव धर्म निभाए,
फिर इस धरती माँ को गले लगना ही रह गया है॥
उन वीर जवानों ने अपना धर्म निभाया है,
अब उनकी इस अनकहीं कुर्बानी का क़र्ज़ निभाना रह गया है।
धरती माँ के वो पूत कुछ करने आए थे,
जिस मिटटी संग खेले बचपन में उसी में समाना रह गया है॥ 


~'~hn~'~
(One of the poems written by me after Mumbai Attack-26 Nov 08 .....)

Saturday, March 12, 2011

Why



When I was sitting and waiting for you to enter my life,
you were busy in talking with some other girl...
but now I am stand-up and ready to move forward my life,
then why you want to come near me...
 

When I was always dreaming about you and myself,
you were planning new life with someone else...
But now I am wake-up and stopped thinking about you,
then why you are starting dreaming about me...



When I was ready to give you anything whatever you would say,
you said you knew what you want and you were chasing that only..
But now I know already that there is nothing I really can give you,
then why you want one more chance from me...
 

When I was expecting that you would understand my love signs,
you were not even looked and noticed those signs....
but now I am stopped giving those signs and signals,
then why you are seeing those signs by making your own all's...
 ~'~hn~'~

Sunday, February 6, 2011

अब यह जहाँ रहने लायक कहाँ रहा

 

अब यह जहाँ रहने लायक कहाँ रहा,
कहाँ वो भाई चारा कहाँ वो इंसान रहा |
वो प्यार माँ के लिए पिता के लिए स्नेह अब कहाँ रहा,
इतनी जमीन मेरी इतनी है तेरी धरती माता को बाँट इंसान रहा ||




जहाँ रहतें थे सब मिलजुल कर सब कहते थे हम एक है,
वही परिवार अब बट गया बोले आधा-आधा ही ठीक है |
यहाँ अब भाई भाई के खून का प्यासा है,
सबका प्यारा दुलारा तो अब सिर्फ़ पैसा है ||



जियो और जीने दो जैसे नारा अब कहाँ,
इंसानियत का कोई नही साथी हर मजहब के लोग जहाँ |
सब है करते अपने अपने धर्म की बातें यहाँ,
हिंदू रहे हिंदू मुस्लिम रह गए मुस्लिम यहाँ |
अब गुरुनानक जी और इशु मसी के बोल कहाँ,
सब इंसान कहते ख़ुद को पर इंसानियत है कहाँ ||


~'~hn~'~
(Written after 13 September 2008 Delhi bombings.... I was to upset at least 30 people killed and over 100 injured )

Wednesday, February 2, 2011

दोस्त



मेरे दोस्त मेरे यार, याद है मुझे वो तेरा निछल प्यार.
गाता है मेरा तार तार, करती हूँ मैं तुम्हे याद बार बार.
 
कभी कभी मैं सोचा करती थी, तुम धोखेबाज...हो,
जो तुम मेरे पीठ पीछे, मेरी बातें करते किया करते हो.
उन्हें चुपके से एक टेप में रिकॉर्ड करू,
फिर कभी फुर्सत में उसे सुनु.

सुना तो ऐसा लगा कितना ग़लत थी मैं,
तुम ही मेरे सचे यार हो, स्वार्थी थी मैं.



याद है मुझे वो रूठना मानना,
कई बार एक दूजे के साथ कोई फिल्मी गाना गुनगुनाना.
तुम हो मेरे मन के एक तार,
तुम ही मेरे जीवन के हो सार.
मेरे दोस्त मेरे यार
याद है मुझे वो तेरा निछल प्यार. 
 
~'~hn~'~
(Written in 10th Std after a fight and then patch-up with my friend)

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