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Friday, October 14, 2011

अनजाना सा रिश्ता (part 2)

करीब दो साल बाद....

उस दिन की एक मुलाक़ात और जीवन भर साथ रहने का फैसला थोडा मुश्किल था....मेरे लिये नहीं... उसके लिए....क्यूंकि मैं तो कब से अपनी सपनो की रानी का जैसे इंतज़ार ही कर रहा था.....अपनी साड़ी पिछली सारी girlfriends में खोज रहा था उसे....की कब वो मेरी ज़िन्दगी में आए और मेरी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल दे...दो साल हो गए हमें युही यदा-कदा मिलते मिलते....और एक साल पहले ही इस रिश्ते को एक नाम देते हुए.....उफ़....सच कहा है किसी ने सच्चा प्यार ज़िन्दगी के मायिने ही बदल देता है....

आज भी जब मैं उस दिन के बारे में सोचता हूँ तो मुझे यकीन नहीं होता कि जिस लड़की को मैं अक्सर अपने सपनो में देखा करता था वो ही आज मेरी मंगेतर है... माहि...हाँ माहि....जिसे मैंने सबसे पहले कब देखा था ये भी नहीं पता..शायद जब से होश संभाला तब से...या फिर जब से मैंने लड़के-लड़की के बीच होने वाले प्यार के रिश्ते को समझा तब से....माहि ही वो ही लड़की है जिसे देख कर मेरा दिल पहली बार धड़का था...जिसने मुझे लड़की के लिए आकर्षण का मतलब थोडा बहुत महसूस कराया था.  मैं जब भी अपने मामा के घर जाता था....तो वही बने बचपन के दोस्त कुनाल के घर आता जाता रहता था....जिसके घर के ठीक सामने ही माहि का घर था....कुनाल और मैं अक्सर कुनाल के कमरे की खिड़की से माहि के कमरे की खिड़की में आस लगाये झांकते रहते कि कब माहि हमको दिख जाए....बस एक झलक....कई बार हमारी किस्मत चमक भी जाती थी....माहि कभी बाल बनाती...तो कभी नाचती...तो कभी खिडकी से बाहर के नज़ारें निहारती हुई दिख जाती थी....सच वो भी क्या दिन थे....बचपना जाने को तैयार नहीं था और जवानी आने को बेक़रार थी....

और आज जब माहि मेरी है तो मुझे यकीन नहीं होता....मुझे क्या कुनाल को भी यकीन नहीं हुआ था जब मैंने अपने और माहि के रिश्ते के बारे में उसे बताया...मैं यकीन से कह सकता हूँ वो दिल ही दिल में मुझसे ईर्ष्या कर रहा होगा...
"तुम नाश्ते में क्या लोगे....कैंटीन से कुछ लेके आऊँ या फिर वही अपना मनपसंद पास्ता...." जैसे ही यह आवाज़ मेरे कानो में पड़ी...मैं फिर वापस अपने समय पे लौट आया...मैं अपने MBA University के boys hostel के रूम में बिस्तर पर लेटा-लेटा सोच रहा था....और भावेश मेरा room-mate और classmate है...अभी हमारा first year ख़त्म होने को बस 2 महीने और है...मुझे भावेश के साथ रहते रहते लगभग 10 महीने हो गए है....O GOD ...Help me.... हमेशा लड़कियों के बारे में fantasize करना...यहाँ वहां उनके अभद्र पोस्टर्स लगाना.....मगर जब लड़कियों से बात करने की बात आती तो उसके पसीने छुट जाते थे....

"पियूष...बताओ क्या लोगे..कैंटीन का नाश्ता या फिर पास्ता" भावेश ने एक बार फिर मुझसे पुछा..
"कैंटीन जाने की जरूरत नहीं....मैं तुम दोनों के लिए छोले भठूरे ले कर आई हूँ" कमरे में आते ही सिया बोली...सिया भी हमारी classmate है...और यहीं university के girls hostel में रहती है.....वो मेरी project/task partner है...हम दोनों को अक्सर सभी subjects के projects एकसाथ करने होते थे.....भावेश का पार्टनर साथ वाले रूम में ही रहता था...कपिल...वो कभी भी हमारे रूम में नही आता था....भावेश को ही उसके कमरे में जाना पड़ता था.....इसलिए हमारे कमरे में सिया कभी भी आ जा सकती थी..
"जल्दी से नाश्ता finish कर लो.....आधे घंटे के बाद ही Quant की क्लास है.." सिया छोले भठूरे के packet को खोलते हुए बोली...मैंने बिस्तर के साइड टेबल पे रखी टेबल घडी पर टाइम देखा....तो सच में टाइम बहुत कम था..हमको इस्सी टाइम में अपना नाश्ता, नहाना, Quantitative Techniques के पिछली क्लास के नोट्स का revision और तैयार भी होना था....

"Thanks सिया...आज भी तुमने हमें फिर से बचा लिया...वरना आज भी मैं assignment नहीं submit कर पाता...." भावेश ने सिया को एक टूक देखते हुए कहा....उसकी आँखों की चमक और खुले मुह से कोई भी बता सकता था की वो सिया के बारे क्या महसूस करता है.....वरना वो किसी लड़की को अपने कमरे में ऐसे ही आने जाने नहीं देता....जैसे ही मैंने उसे पहली बार बताया था की सिया मेरी पार्टनर है और एक assignment के लिए मुझे और सिया को रात भर काम करना है...girls hostel में लडको का आना मना है इसलिए सिया और मैं हमारे कमरे में अपना काम रात भर करेंगे....तभी भावेश की झटपट हाँ से मैं समझ गया था...वो क्या सोचता है सिया के बारे में....मगर सिया में ऐसा कुछ खास है ही नहीं जो उसे देख कर किसी को उस से प्यार हो जाए.....मुझे तो सिया simple और साधारण सी दिखने वाली लड़की है...हाँ वो दोस्त बहुत अच्छी है....मेरे लिए तो वो एक अच्छी assignment partner, बहुत intelligent, clever और एक अच्छी दोस्त है...ना जाने भावेश ने उस में ऐसा क्या देखा....

खेर यह तो रोज़ का ही है....हमने झटपट नास्ता ख़त्म किया...फिर नहाने चले गए...सभी लोग नहा कर तैयार हो कर कॉलेज के corridors में घूमते देखे जा सकते थे.....इसलिए बाथरूम फ्री मिल गए...नहाने के लिए मुझे सिर्फ आधी बाल्टी ही मिल पायी.....चलो आज  इतना पानी तो मिला...वरना आज भी नहाने की छुट्टी करनी पड़ती....जब वापस कमरे में गए तबतक सिया ने हमारे notes /assignments दूंढ लिए और हमारा बैग तैयार कर दिया.....

"तुमने मेरे बैग को हाथ क्यूँ लगाया...very bad habbit ...किसी के बैग की चीज़ों को हाथ नहीं लगाना चाहिए...." भावेश ने अपना बैग सिया से छीनते हुए डांटा.....और मेरी तरफ इशारा किया.....
"ठीक है...बिग बॉय....फ़िक्र मत करो मैंने तुम्हारी अप्सराओं वाली पत्रिकाओं को हाथ भी नहीं लगाया" जैसे ही सिया ने कहा...मैं और सिया एकसाथ जोरो से हँसने लगे...और हँसते-हँसते ही क्लास तक पहुंचे....

सिया ऐसी ही थी....वो कब क्या करेगी..कब तुमको अचानक हैरान कर देगी कोई नहीं बता सकता था....कभी कभी मुझे लगता है..की वो हम लडको के बारे में भी सभी कुछ जानती है....हम कब क्या सोचते है.....कैसे कब क्या करना चाहते है....अक्सर वो लडको की तरह ही सोचती है....मुझे कभी कभी लगता है जैसे वो उसका शरीर बेसक लड़की का है पर वो सोचती बिलकुल लडको की तरह है...बिलकुल बिंदास लड़की है सिया...बस एक बात ही लड़कियों से मिलती है उसकी वो अपने काम समय से पहले करती है....जैसा हर पढ़ाकू लड़की करती है....जब की लड़के एन टाइम पर काम करना शुरू करते है....सिया अपना काम करने के बाद अक्सर मुझे भी मेरा काम याद कराती है.....कभी कभी जब मैं माही से फ़ोन पे बात करता हूँ तो वो मेरे हिस्से का काम भी कर देती है...बस मुझे finishing करनी होती है.....कहने को दोस्तों की दोस्त है वो....बिलकुल लडको की पक्की दोस्तों वाली दोस्ती...सच दोस्ती निभाना अच्छे से आता है उसे....मैं अभी तक जितनी भी लड़कियों से मिला हूँ उन् सबमें से सबसे अलग है ये सिया...

कुछ दिनों बाद 

"कल ERP का suprise test कैसा हुआ तुम्हारा" सिया ने Marketing Research की बुक को बंद करते हुए मुझसे पुछा....
"ओके ओके ही गया...और तुम्हारा....?" मैंने अपने नोट्स को ठीक करते हुए कहा.....
"हमेशा की तरह फर्स्ट क्लास...अच्छा इस weekends भी तुम माहि से मिल रहे हो क्या?"
"पता नहीं अभी तक तो कोई प्लान नहीं बनाया.....हम लोगो को Quant के कुछ concepts revision करने चाहिए...dont you think...we should do studies together on that...."
"मगर वो तो हम परसों ही कर चुके है......क्या बात है पियूष...सब ठीक तो है....माहि से कुछ झगडा हुआ है क्या?"
"नहीं...ऐसी कोई बात नहीं है....बस ऐसे ही...मुझे याद नहीं रहा की हमने वो revise कर लिया है..." मैंने सच छुपाने की बहुत कोशिश की..पर..

"मुझे बनाओ मत....कोई बात तो है....ठीक है तुम नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहीं...चलो इस weekend कोई खास काम नहीं है...हम लोग weekend साथ बिताते है...खूब घूमेंगे....फिरेंगे...hostel और university से दूर....मस्ती करेंगे....बस हम दोनों....खूब मज़ा आयेगा.."

मेरे पास सच में weekend को करने को कुछ नहीं था....सो हम लोग weekend की first morning ही institute के gate पे मिलने का प्लान बनाया.....मैंने माहि की गिफ्ट की हुई ब्लैक जींस और क्रीम टी-शर्ट पहनी...यह कुछ अलग सा था....मैं माहि का दिया गिफ्ट सबसे पहले उसी के लिए पहनना चाहता था....पर करता क्या न करता भावेश ने सभी तंग के कपडे धोने के लिए दे दिए थे....

"यार तुम आज तो सिया से पूछोगे ना..." भावेश को जैसे ही पता चला की मैं और सिया बाहर एकसाथ जा रहे है...तो उसकी वही सिया से बात करने की गाथा शुरू कर दी...
"ह्म्म्म" बाल बनाते हुए मैंने हलकी सी हामी भरी...अचानक मेरा फ़ोन बज उठा....
"हेल्लो...माहि...तुम ही हो ना माहि .....यार इतना क्या नाराज़ होना...मैंने बोला तो अगले महीने पक्का हम लोग outing करेंगे..."

"नहीं...पियूष रहने भी दो...मैंने ही गलत मांग की थी...कोई बात नहीं..मैं नहीं तुम ही नाराज़ लगते हो मुझे..इस weekend का कोई प्लान नहीं बनाया तुमने.....इतना ज्यादा नाराज़ हो मुझसे....सॉरी पोप्लू...मुझे समझना चाहिए तुम पर पढाई का कितना pressure है....चलो अब छोड़ो....अभी तो इस weekend का प्लान बताओ.....या फिर इस weekend भी तुमको कोई पढाई करनी है...जानू"

"माहि..मैं तुमसे नाराज़ नहीं हूँ....मुझे लगा तुम नाराज़ हो मुझसे.....इस लिए पिछले weekend का प्लान तुमने cancel कर दिया था....पढाई तो मैं जितना हो सके weekdays में ही पूरा करने की कोशिश करता हूँ...तुमसे मिलने की बेकरारी मुझसे न जाने क्या क्या करवाती है...."

"हाँ जानती हूँ तभी तो मुझसे ज्यादा किताबें पसंद है तुमको...काश मैं भी एक किताब होती....तो कम से कम सारा समय तुम्हारे हाथो में तो रहती.....तुमसे इतनी दूर तो नहीं रहना पड़ता..." माहि ने ऐसा बोल के जैसे मेरे दिल के किसी बुलबुले को छु कर उसे फोड़ दिया हो...

"काश...हाय....चलो फिर मिल लेते है आज...कहाँ मिलना है बोलो आ जाऊंगा..."
"ह्म्म्म....वही अपने पुराने अड्डे पे मिलते है.." यह सुनते ही मेरे दिल में जैसे मोहक रोमांटिक गाने का संगीत बजने लगा....अभी गाना ख़त्म भी नहीं हुआ था...की मेरी आँखों के आगे सिया का मायूस चेहरा मंडराने लगा....
"सिया...सिया..वो..."
"क्या सिया..सिया...क्या हुआ..पियूष...मैं सिया नहीं तुम्हारी गर्ल फ्रेंड माहि हूँ"...

"हाँ माहि...वो असल में मुझे सिया से मिलना था.....चलो कोई नहीं मैं उसे मना कर दूंगा..वो अकेली ही पढ़ लेगी...मेरे लिए तुमसे मिलना ज्यादा ज़रूरी है....दो हफ्तों बाद तुमको देखने के लिए में बता नहीं सकता कितना बेक़रार हूँ.."
फ़ोन रखते ही मैं institute के gate की ओर चल पड़ा...रास्ते भर सोचता रहा की सिया से क्या कहूँगा...सिया को बुरा लग गया तो...पर सच कहूँ तो एक तरफ एक आशा भी थी की वो समझेगी...वो मेरे और माहि के रिश्ते को जानती है.....समझ जाएगी...

तभी मुझे सामने से आती सिया दिखी... pink  और white color की floral dress में सिया बिलकुल अलग लग रही थी...मैंने कभी उसे ऐसा नहीं देखा था....एक पल के लिए मैं भी सब कुछ भूल ही गया था...पर अंदर से आवाज़ आई focus .... focus on माहि...माहि.... माहि....माहि और सिया को कोई मुकाबला होना ही नहीं चाहिए....माहि ही हमेशा जीतेगी...वो तेरी मंगेतर है....सिया बस एक दोस्त.....दोस्ती और प्यार में प्यार ही जीतता है....माहि को मायूस नहीं कर सकता...

"ओये होए...Hi handsome ...Hi handsome ...पियूष मैं सिया हूँ...माहि नहीं...इतना सजधज के आने की क्या ज़रुरत थी....ऐसा करोगे तो मेरा क्या होगा...कहीं मेरा दीन-ईमान न डोल उठे...माहि के लिए मुश्किल न खड़ी कर दूं मैं...हिहिहिहिहिहिहिही" सिया खिलखिलाती हुई बोली....वो अक्सर ऐसे ही चुटकी लेती थी...मुझे छेडती थी....
"मेरी छोड़ो...तुम किस के लिए इतना सजके आई हो....मेरे लिए...भूल गयी मैं पहले से ही किसी का हूँ.."

"ह्म्म्म.....कैसे भूल सकती हूँ...काश मैं माहि और तुम्हारे मिलने से पहले मिली होती तुमसे.....खेर ऐसा कुछ नहीं है मेरे cousin के यहाँ पार्टी है मुझे वहां जाना है इसलिए इतना सजके आई हूँ....मुझे रात को ही उसका फ़ोन आया था....सॉरी पियूष..हम लोग फिर कभी बाहर चलेंगे....इस बार तो...." यह सब सुनके मैं अंदर अंदर बहुत खुश हो गया.....

सिया फिर से बोली..."क्यूँ न तुम मेरे साथ मेरे cousin की पार्टी में चलो...हम वहां भी मज़ा कर सकते है..."
"नहीं...सिया रहने दो....वो असल में मुझे भी माहि से मिलने जाना है येही बताने आया था..उसका अभी फ़ोन आया था....अभी अभी ही प्लान बना है ... " सिया को बीच में रोकते हुए मैं बोला..

सिया को ऑटो करा कर मैंने भी अपने लिए ऑटो किया और चल पड़ा अपनी सपनो की रानी से मिलने.....


to be continue....
~'~hn~'~

Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

2 comments:

Simran said...

Wow Wow!!
Hmm,dor kahin bandhi aur dil kahi aur ko bekarar..
Nice climax :)

Ab mahi aur piyush ke beech kaun sa twist hone waala hai.. Suspense :) ;)

Hema Nimbekar said...

@simran..

Thx sweety....I hope nxt parts bhi tumko itne hi achche lage....:);)

How u find my blog??

लिखिए अपनी भाषा में

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