"ऑटो"...."ऑटो"......मैं लगातार सड़क के किनारे से आवाज़ लगा रहा था..और सभी ऑटो रिक्शा सवारी लिए ही आ रहे थे......"गाडी को भी अभी ख़राब होना था....माँ के सुबह से बीस फ़ोन आ चुके थे......" मन ही मन मैं बुदबुदा ही रहा था की एक आवाज़ आई...."साहेब जी कहाँ जाना है.." देखा तो एक टेक्सी की खिड़की से बाहर सर निकले टेक्सी ड्राईवर मेरी और देख रहा था......."साहेब इस समय यहाँ ऑटो या टेक्सी मिलना ज़रा मुश्किल है.....वैसे आपको जाना कहाँ है....मकेनिक चाहिए ना.....चलिए मैं ले चलता हूँ" उसने फिर से कहा...
"नहीं मकेनिक नहीं.....मुझे एअरपोर्ट के पास foodvilla restaurant है बस वही पंहुचा दो......थोडा जल्दी है" मैंने ड्राईवर से बहुत नम्रता से कहा.....
"ठीक है साहेब..आईये बैठिये....पर हाँ मीटर के हिसाब से 100 रुपए ज्यादा लूँगा...क्यूंकि एअरपोर्ट मुझे उल्टा पड़ेगा" उसने दबंग अंदाज़ में कहा...
"ठीक है" बोल कर मैं टेक्सी के अंदर सामान के साथ बैठ गया...मरता क्या न करता.....कोई और समय होता या मुझे इतनी जल्दी नहीं होती तो मैं इस टेक्सी में शायद ही बैठता....दुसरो की मजबूरी को अपना फायदा कैसे बनाते है...ये सभी को कलयुग सिखा ही देता है......अभी समय मेरे साथ नहीं था देरी हो रही थी कोई मेरा इंतज़ार कर रहा था और मैंने ही वो restaurant कुछ दिनों पहले सुझाया था माँ को.....
एक हफ्ते पहले
घर में पहला कदम रखते ही मैं माँ से बोला "माँ अगले हफ्ते मुझे ऑफिस के काम से Banglore जाना होगा...."
"अच्छा......कितने दिनों के लिए" माँ ने पुछा...
"हम्म...कितने दिनों के लिए ये तो अभी नहीं पता....अभी बाकी सब decide होने में टाइम लगेगा...बस तुम मेरा सामान पैक कर देना अगले हफ्ते..." मैंने अपने जूतों के फीते खोलते हुए कहा...
"बस अब यही काम रह गया है...पहले कॉलेज हॉस्टल के लिए सामान पैक करती थी...अब ऑफिस टूर के लिए...ना जाने कब कोई और आयेगी तेरी जिन्दंगी में तेरा सामान पैक करने के लिए" माँ ने रसोई में जाते हुए कहा...
"माँ तुम फिर शुरू हो गयी..." यह बोल कर मैं फ्रेश होने बाथरूम में चला गया...
जब कपडे बदल कर बाहर आया तो पापा पहले ही dinning टेबल पे बैठे हुए थे..."वाह: आज बेटे के लिए बहुत कुछ ख़ास बनाया है तुमने" पापा सामने रखे बर्तनों में झाकते हुए माँ से कहा...
"तो क्या....जैसे तुम्हारे लिए कभी कुछ खास नहीं बनाती मैं....." माँ ने जवाब दिया...
"देखा बेटा अपनी माँ को.....चलो आ जाओ...खाना शुरू करे..." पापा मुझे देखते ही कहा...
"पहले अपनी बहन को बुला ले......अपने कमरे में कबसे पढ़ रही है"...माँ ने मुझे बताया...
मैं भी आज्ञाकारी बेटे की तरह अपनी बहन पीहू के कमरे की ओर बढ गया.....उसके स्कूल के half yearly exams शुरू होने वाले थे इसलिए उसका आधे से ज्यादा दिन अपने कमरे में पढाई करते हुए बीतता था....
"पीहू...पीहू....." मैंने कमरे के बाहर से ही आवाज़ लगायी..."माँ बुला रही है आजा..खाना खा ले...सब के साथ खाना खाने के बाद पढ़ लेना"...."आई भैया..." अंदर से उसकी मीठी सी आवाज़ आई....सुबह से यही मेरे लिए पहली मीठी आवाज़ थी....वरना घर में माँ की जिद से भरी आवाज़, पापा की दो-तुक मगर प्यार से बात, ऑफिस में बॉस की कड़क और रोबदार आवाज़ और सहयोगियों की खिटपिट और शोरशराबे की आवाज़ें.....सच कहा है किसी ने नौकरी के लाइफ एकदम बोरिंग हो है.....आधे से लाइफ का मज़ा ज्यादा खून पसीने के साथ ऑफिस में निकल जाता है...बाकी की कसर घर वाले शादी और जिम्मेदारियों के बोझ के बारे में बातें कर कर के दिमाग और दिल से भी जीवन का असली रस भी बेस्वाद कर देते है.....कॉलेज टाइम पर पैसो के अभाव के चलते जीने का मज़ा पूरी तरह सही में नहीं ले पाते....थोड़ी सी मौज-मस्ती से संतुष्ट होना पड़ता है....सोचते है एक अच्छे से पढ़-लिख ले....कुछ बन जाएँ....फिर तो अच्छी नौकरी और अच्छी तन्खाह होगी....हाथों में ढेर सारा पैसा...फिर कौन हमें रोक सकेगा....जीवन का भरपूर लुफ्त उठाएंगे....पर तब किसे पता था हाथों में पैसे होते हुए भी...अब हमें समय और जोश का अभाव होगा....यह मुझे नौकरी के एक साल बाद ही पता चल पाया...
"चलो भैया...." पीहू की मीठी आवाज़ एक बार फिर कानो पे पड़ी.....सच में छोटी बहन की मासूम आवाज़ ने मेरा
दिल भर दिया...पता नहीं क्यूँ मैं अंदर ही अंदर ख़ुशी से जैसे भर सा गया..."चलो मिस पढ़ाकू.....माँ ने आज सब
हमारी पसंद का ही बनाया है"
हम सब चुपचाप खाना खा रहे थे....तभी माँ ने चुपी तोड़ी "आज तुम्हारी पायल आंटी का फ़ोन आया था....वो दादी बनने की ख़ुशी में एक समारोह कर रही है....हमें बुलाया है....तुम्हारी शादी के बारे में भी पूछ रही थी....मुझसे तो कोई जवाब देते नहीं बना..."
"माँ आप फिर से....पापा माँ को समझायिये ना" मैंने पापा से आग्रह किया...मेरा सब्र का मटका पूरा भर चूका था....
"मगर बेटा....वो गलत क्या बोलती है...शादी कब करनी है यह तुम्हारा ही निर्णय होगा...मगर कम से कम लड़की देख कर पसंद तो कर ही सकते हो.....इसमें क्या बुरा है....अच्छा रिश्ता ढूँढने में भी वक्त लगता है" पापा मुझे ही समझाने लगे...ऐसा लग रहा था जैसे यह सब उनकी मिली भगत है....पर मैं यह भी जानता था कि पापा हमेशा से ही माँ का साथ देते आये है....और इसी तरह साथ देते है वो दोनों....मैं चाह कर भी ना नहीं कर सका.."ठीक है पापा..आप कहते हो तो लड़की से मिल लेता हूँ"
"ठीक है फिर मैं कल ही लड़की को घर बुला लेती हूँ या फिर उसी के घर चलते है" माँ को तो जैसे खुली छुट मिल गयी थी अपनी तेज़ गाडी दोड़ाने की......
"माँ कल.....नहीं माँ...इस हफ्ते मुझे बिलकुल भी टाइम नहीं है....banglore टूर की सारी प्लानिंग करनी है....Presentation बनानी है.....टिकेट और होटल बुक करने है..ऊपर से रोज़ की बॉस की बातें और काम भी करना है ऑफिस में....मुझे तवन्खा ऐसे ही नहीं देते वो लोग...कोलू के बैल की तरह काम भी करवाते है...और मैं पहले लड़की से अकेले मिलना चाहूँगा....फिर मुझे लड़की पसंद आने पर आप परिवार मिलन करते रहना"
"देखा आपने मुझे इस लड़के की बातों पे अब विश्वास नहीं होता....पहले ना-ना बोलता रहा...और अब हाँ बोली है तो लाड साहेब के पास टाइम नहीं है..." माँ का खिला हुआ चेहरा फिर से मुरझा सा गया....पापा ने मेरी तरफ आशा भरी नज़रो से देखा...
"माँ ऐसा नहीं है....अब मैं बोल रहा हूँ लड़की से मिल लूँगा....तो मिल लूँगा...पर हाँ अकेले ही मिलूंगा..."
"हाँ अकेले ही मिल लेना..पर मिलेगा कब...टाइम तो है नहीं ना तेरे पास"
"टूर से वापस आके मिल लूँगा"
"टूर के बाद....यानी दो-तीन हफ्ते बाद...कहीं तब तक तेरा इरादा फिर बदल गया तो.....नहीं मैं यह risk नहीं ले सकती"
"तो तुम क्या चाहती हो टूर पे जाने से पहले मिलू?...."
"हाँ .....और वादा कर लड़की से अच्छे से मिलेगा...." माँ की दादागिरी से मैं बिलकुल सकपका सा गया...
"ठीक है मैं वादा करता हूँ...कि मैं अच्छे से मिलूँगा....और टूर पे जाने से पहले मिलूँगा...जैसे ही मुझे काम से टाइम मिलता है मैं आपको बता दूंगा" माँ को कह तो दिया....वादा कर तो दिया....पर क्या ऑफिस की busy लाइफ मुझे थोडा सा समय देगी भी की नहीं कौन जानता था...
दो-चार दिनों मैंने टिकेट भी बुक करा ली...और साथ ही साथ माँ को लड़की से मिलने का समय और जगह भी बता दी....
"माँ वो एअरपोर्ट के करीब है....मैं उस से मिल कर...वहीँ से एअरपोर्ट चला जाऊंगा...और मैंने तुम्हे लड़की से मिलने का वादा किया था.....फिर जगह कोई भी हो....जानता हूँ उस को थोडा दिक्कत होगी....पर तुम्ही सोचो....मैं अपने 1 हफ्ते लम्बे banglore trip से पहले ही लड़की से मिल रहा हूँ जैसा कि मैंने तुम्हे वादा किया था"
एक हफ्ते पहले
घर में पहला कदम रखते ही मैं माँ से बोला "माँ अगले हफ्ते मुझे ऑफिस के काम से Banglore जाना होगा...."
"अच्छा......कितने दिनों के लिए" माँ ने पुछा...
"हम्म...कितने दिनों के लिए ये तो अभी नहीं पता....अभी बाकी सब decide होने में टाइम लगेगा...बस तुम मेरा सामान पैक कर देना अगले हफ्ते..." मैंने अपने जूतों के फीते खोलते हुए कहा...
"बस अब यही काम रह गया है...पहले कॉलेज हॉस्टल के लिए सामान पैक करती थी...अब ऑफिस टूर के लिए...ना जाने कब कोई और आयेगी तेरी जिन्दंगी में तेरा सामान पैक करने के लिए" माँ ने रसोई में जाते हुए कहा...
"माँ तुम फिर शुरू हो गयी..." यह बोल कर मैं फ्रेश होने बाथरूम में चला गया...
जब कपडे बदल कर बाहर आया तो पापा पहले ही dinning टेबल पे बैठे हुए थे..."वाह: आज बेटे के लिए बहुत कुछ ख़ास बनाया है तुमने" पापा सामने रखे बर्तनों में झाकते हुए माँ से कहा...
"तो क्या....जैसे तुम्हारे लिए कभी कुछ खास नहीं बनाती मैं....." माँ ने जवाब दिया...
"देखा बेटा अपनी माँ को.....चलो आ जाओ...खाना शुरू करे..." पापा मुझे देखते ही कहा...
"पहले अपनी बहन को बुला ले......अपने कमरे में कबसे पढ़ रही है"...माँ ने मुझे बताया...
मैं भी आज्ञाकारी बेटे की तरह अपनी बहन पीहू के कमरे की ओर बढ गया.....उसके स्कूल के half yearly exams शुरू होने वाले थे इसलिए उसका आधे से ज्यादा दिन अपने कमरे में पढाई करते हुए बीतता था....
"पीहू...पीहू....." मैंने कमरे के बाहर से ही आवाज़ लगायी..."माँ बुला रही है आजा..खाना खा ले...सब के साथ खाना खाने के बाद पढ़ लेना"...."आई भैया..." अंदर से उसकी मीठी सी आवाज़ आई....सुबह से यही मेरे लिए पहली मीठी आवाज़ थी....वरना घर में माँ की जिद से भरी आवाज़, पापा की दो-तुक मगर प्यार से बात, ऑफिस में बॉस की कड़क और रोबदार आवाज़ और सहयोगियों की खिटपिट और शोरशराबे की आवाज़ें.....सच कहा है किसी ने नौकरी के लाइफ एकदम बोरिंग हो है.....आधे से लाइफ का मज़ा ज्यादा खून पसीने के साथ ऑफिस में निकल जाता है...बाकी की कसर घर वाले शादी और जिम्मेदारियों के बोझ के बारे में बातें कर कर के दिमाग और दिल से भी जीवन का असली रस भी बेस्वाद कर देते है.....कॉलेज टाइम पर पैसो के अभाव के चलते जीने का मज़ा पूरी तरह सही में नहीं ले पाते....थोड़ी सी मौज-मस्ती से संतुष्ट होना पड़ता है....सोचते है एक अच्छे से पढ़-लिख ले....कुछ बन जाएँ....फिर तो अच्छी नौकरी और अच्छी तन्खाह होगी....हाथों में ढेर सारा पैसा...फिर कौन हमें रोक सकेगा....जीवन का भरपूर लुफ्त उठाएंगे....पर तब किसे पता था हाथों में पैसे होते हुए भी...अब हमें समय और जोश का अभाव होगा....यह मुझे नौकरी के एक साल बाद ही पता चल पाया...
"चलो भैया...." पीहू की मीठी आवाज़ एक बार फिर कानो पे पड़ी.....सच में छोटी बहन की मासूम आवाज़ ने मेरा
दिल भर दिया...पता नहीं क्यूँ मैं अंदर ही अंदर ख़ुशी से जैसे भर सा गया..."चलो मिस पढ़ाकू.....माँ ने आज सब
हमारी पसंद का ही बनाया है"
हम सब चुपचाप खाना खा रहे थे....तभी माँ ने चुपी तोड़ी "आज तुम्हारी पायल आंटी का फ़ोन आया था....वो दादी बनने की ख़ुशी में एक समारोह कर रही है....हमें बुलाया है....तुम्हारी शादी के बारे में भी पूछ रही थी....मुझसे तो कोई जवाब देते नहीं बना..."
"माँ आप फिर से....पापा माँ को समझायिये ना" मैंने पापा से आग्रह किया...मेरा सब्र का मटका पूरा भर चूका था....
"मगर बेटा....वो गलत क्या बोलती है...शादी कब करनी है यह तुम्हारा ही निर्णय होगा...मगर कम से कम लड़की देख कर पसंद तो कर ही सकते हो.....इसमें क्या बुरा है....अच्छा रिश्ता ढूँढने में भी वक्त लगता है" पापा मुझे ही समझाने लगे...ऐसा लग रहा था जैसे यह सब उनकी मिली भगत है....पर मैं यह भी जानता था कि पापा हमेशा से ही माँ का साथ देते आये है....और इसी तरह साथ देते है वो दोनों....मैं चाह कर भी ना नहीं कर सका.."ठीक है पापा..आप कहते हो तो लड़की से मिल लेता हूँ"
"ठीक है फिर मैं कल ही लड़की को घर बुला लेती हूँ या फिर उसी के घर चलते है" माँ को तो जैसे खुली छुट मिल गयी थी अपनी तेज़ गाडी दोड़ाने की......
"माँ कल.....नहीं माँ...इस हफ्ते मुझे बिलकुल भी टाइम नहीं है....banglore टूर की सारी प्लानिंग करनी है....Presentation बनानी है.....टिकेट और होटल बुक करने है..ऊपर से रोज़ की बॉस की बातें और काम भी करना है ऑफिस में....मुझे तवन्खा ऐसे ही नहीं देते वो लोग...कोलू के बैल की तरह काम भी करवाते है...और मैं पहले लड़की से अकेले मिलना चाहूँगा....फिर मुझे लड़की पसंद आने पर आप परिवार मिलन करते रहना"
"देखा आपने मुझे इस लड़के की बातों पे अब विश्वास नहीं होता....पहले ना-ना बोलता रहा...और अब हाँ बोली है तो लाड साहेब के पास टाइम नहीं है..." माँ का खिला हुआ चेहरा फिर से मुरझा सा गया....पापा ने मेरी तरफ आशा भरी नज़रो से देखा...
"माँ ऐसा नहीं है....अब मैं बोल रहा हूँ लड़की से मिल लूँगा....तो मिल लूँगा...पर हाँ अकेले ही मिलूंगा..."
"हाँ अकेले ही मिल लेना..पर मिलेगा कब...टाइम तो है नहीं ना तेरे पास"
"टूर से वापस आके मिल लूँगा"
"टूर के बाद....यानी दो-तीन हफ्ते बाद...कहीं तब तक तेरा इरादा फिर बदल गया तो.....नहीं मैं यह risk नहीं ले सकती"
"तो तुम क्या चाहती हो टूर पे जाने से पहले मिलू?...."
"हाँ .....और वादा कर लड़की से अच्छे से मिलेगा...." माँ की दादागिरी से मैं बिलकुल सकपका सा गया...
"ठीक है मैं वादा करता हूँ...कि मैं अच्छे से मिलूँगा....और टूर पे जाने से पहले मिलूँगा...जैसे ही मुझे काम से टाइम मिलता है मैं आपको बता दूंगा" माँ को कह तो दिया....वादा कर तो दिया....पर क्या ऑफिस की busy लाइफ मुझे थोडा सा समय देगी भी की नहीं कौन जानता था...
दो-चार दिनों मैंने टिकेट भी बुक करा ली...और साथ ही साथ माँ को लड़की से मिलने का समय और जगह भी बता दी....
"माँ वो एअरपोर्ट के करीब है....मैं उस से मिल कर...वहीँ से एअरपोर्ट चला जाऊंगा...और मैंने तुम्हे लड़की से मिलने का वादा किया था.....फिर जगह कोई भी हो....जानता हूँ उस को थोडा दिक्कत होगी....पर तुम्ही सोचो....मैं अपने 1 हफ्ते लम्बे banglore trip से पहले ही लड़की से मिल रहा हूँ जैसा कि मैंने तुम्हे वादा किया था"
टेक्सी की खिड़की से आती ठंडी हवा मुझे बता रही थी कि अब मैं नेशनल highway पे पहुँच गया था....और बस जल्दी ही वहां पहुँच जाऊंगा....
अचानक मेरा फ़ोन बज उठा....
"हेल्लो"
"हेल्लो बेटा....पहुच गया क्या?"
"हाँ माँ बस 20-25 min में पहुच जाऊँगा.....आप बार बार कॉल करना बंद करो...."
"अब एक माँ अपने बेटे को फ़ोन भी नहीं कर सकती"
"please माँ...मैं फ़ोन रख रहा हूँ"
21th कॉल माँ भी ना.....जैसे मेरी शादी करना बस यही एक काम रह गया है उनकी लाइफ में.....OO No एक बात तो बोलना भूल ही गया माँ को....मैंने एक बार फिर फ़ोन निकला और सीधा पापा का नंबर मिला कर गाडी ख़राब हो गयी है...और गाडी कहाँ है बता दिया...वो गाडी को ठीक करा के वहां से ले जायेंगे..
फ़ोन काट कर मैं फिर एक बार सोचने लगा....अभी तो नौकरी लगी है और अभी से शादी का चक्कर...इस लाइफ से अच्छी तो कॉलेज लाइफ थी....आजाद मदमस्त भँवरे की तरह कभी इस फूल तो कभी उस फूल.....हाँ मेरी कुछ ex-girl-friends थोड़ी सी out of the world थी.....जिनका I.Q. बिलकुल न के बराबर था....और कुछ ज़रुरत से ज्यादा ख्याल रखने वाली थी जिनको पल पल की खबर चाहिए होती थी....मानता हूँ कोई भी व्यक्ति perfect नहीं होता.....पर फिर भी उन् सभी लड़कियों में से कोई भी मुझे इतनी पसंद नहीं आई कि मैं सारी जिन्दंगी उसके साथ बिता सकूँ....और आज देखो..मैं शादी के लिए लड़की पसंद करने जा रहा हूँ.....क्या एक बार मिलने से हम दुसरे को जान-समझ पाएंगे....पसंद कर लेंगे एक दुसरे को......यह सचमुच बहुत अजीब था.....पर माँ के लिए...माँ से किए वादे के लिए.....
"लो साहेब जी पहुच गए" इतना सुनते ही मेरे बदन में एक सनसनाहट सी दौड़ गयी....टेक्सी ड्राईवर को किराया दे कर सूटकेस उठाये अंदर जा कर मैं अपनी reserve table ढूंढने लगा...टेबल नंबर 9 ....वहां मैंने मेरी पीठ किए लाल और हरे रंग की कुर्ती पहने लड़की को बैठे देखा.....अचानक मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा और पैर तेज़ी से उसकी ओर बढ़ने लगे....ऐसा मैंने पहले कभी भी महसूस नहीं किया था.....अभी तो मैंने उसे देखा भी नहीं था....और अभी से जैसे उसका सम्मोहन मुझे मोहित कर अपनी ओर खिंच रहा हो....
"नहीं..... नहीं.....ये बस किसी से पहली बार मिलने की उत्सकता भर ही है कोई सम्मोहन नहीं....अभी तो मैंने उसे देखा भी नहीं.....हाँ यह उत्सकता थोड़ी अजीब सी है.....बिलकुल वैसी जैसी पापा को हुई थी जब वो माँ देखने गए थे...." मैं खुद को ही मन ही मन समझाने लगा "आज समझ आया पापा उस मुलाक़ात को अभी तक क्यूँ नहीं भूला पाए है..क्यूँ वो अक्सर वो किस्सा माँ के मन करने के बावजूद हमें सुनाते थे....माँ को शायद अपने बच्चो को यह सब बातें बताना अजीब लगता होगा.."
खैर टेबल 9 तक पहुच कर मैंने अपने पुराने स्टाइल में लड़की के पीछे से बोल दिया....
"Hi ....Hello....मैं पियूष......" आवाज़ को मैंने जानभूझ कर कड़क, वजनदार और रोबदार ही रखी....जैसा की कॉलेज टाइम पे लड़कियों पर अपना जादू चलने के लिए किया करता था....
लेकिन मेरा यह वजनदार और रोबदार रूप ज्यादा देर तक नहीं रह पाया....जैसे ही वो लड़की पलटी...और मेरी नज़र उस पर और उसकी नज़र मुझ पर पड़ी....नज़रें आपस में टकराई और हम दोनों ही एक दुसरे को देखते ही रह गए....जैसा की अक्सर मैं अपने रोमांटिक सपनो में या फिर रोमांटिक फिल्मों में देखा करता था.....मुझे मेरी आँखों पे विश्वास ही नहीं हो रहा था.....वो सपना सच हो गया है और वो भी ऐसे...इतनी अजीब situation में.....
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
to be continue....
~'~hn~'~
Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.
2 comments:
कहानी अच्छी है अगले अंक का इतेजार रहेगा।
समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/10/blog-post_13.html
@Pallavi
....Welcome to my Blog....
Thank you so much yeah next parts are in line....yet to come...
will visit your blog for sure...
Post a Comment