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Sunday, August 24, 2014

वो और हम

"बेरहम हैं वो या फिर बेफिक्र हैं...
कितना भी बताऊ उनको दिल ए हाल वो हैं की सुनते ही नहीं"
~~hn~~


"कहने को मलहम भी वो ही हैं इस दिल की चोट का..
पर दर्द को बढ़ाते भी वो ही है और चोट देते भी वो ही हैं"
~~hn~~

"उनको रोज़ हमसे लड़ने की आदत हैं..
या हमें अपना रूठना और उनका मनाना पसंद है"
~~hn~~


"आपका रूठ जाने का नहीं..
हमें मनाना नहीं आता इसका गम है..
आपके चुप रहने का नहीं..
हमें बातें बनाना नहीं आता इसका गम है..
आपकी नापसंद होने का नहीं..
हमारी किस्मत में आपका न होने का गम है...
आपका हमारी ज़िन्दगी में न आने का नहीं..
हमारी यादों में रोज़ परछाई बनके आपके आने का गम है.."
~~hn~~


"हमें कहाँ मिली फुसरत उनके हाथो से दिल टूटने का मातम मनाने की...
हम तो मशरूफ थे उनके घर बस जाने के जश्न में...."
~~hn~~


"शरारत है भरी उनकी नज़रों में और हम भी उन्हें बेइंतहा निहारते हैं..
वो टुकुर टुकुर हमें घूरते हैं और चोरी चोरी नज़रों से हम भी उनकी नज़र उतारते हैं..."
~~hn~~

Saturday, December 28, 2013

कुछ ऐसे ही

जज्बातों के लाख समंदर है … कश्ती कोई नहीं। …
अब तो या हम डूब जायेंगे या फिर तैरना आ जायेगा हमें ....
~'~hn~'~

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बस चल रही है ज़िन्दगी कुछ युही बेहिसाब सी.. 
कभी खुश मिज़ाज़ है तो कभी तबियत है नासाज़ सी। …
~'~hn~'~

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कोई तो है जो हमको याद करता है
बेहिसाब न सही थोडा सा लिहाज़ रखता है..
~'~hn~'~

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जिस साये को शरारत में साथ पाया 
जिस साये को इब्बादत में साथ पाया 
वो कोई और नहीं बस दिल का ही फितूर था 
वो कुछ और नहीं बस जवानी का जूनून था
~'~hn~'~

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दिल चाहता है बिखरे मोती समेत लूं
दिल चाहता है फिर से माला पिरो लूं 
पर खोये मोती कहाँ से लाऊं
पर माला कि डोरी कहाँ से लाऊं
क्या करू कहाँ जाऊं 
इस दिल को कैसे समझाऊं
~'~hn~'~

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दर्द को रम बना के पियेगा अगर 
तो सुबह सरदर्द बन के सताएगा
बात तो तब है जब तुम्हे खुश देख के 
दर्द को दर्द हो कि इसे दर्द क्यों नहीं होता
~'~hn~'~

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Monday, April 1, 2013

प्यालों का गुलाम

माँगा था जहर तुझसे ए दोस्त
तूने मुझे पकड़ा एक जाम दिया ।
अच्छा था किस्सा एक बार खत्म हो जाता मगर 
तूने मुझे बना प्यालों का गुलाम दिया ।।

क्यूँ इतना याद करते है मुझे ये प्याले 
बार बार जो बुलाने का पैगाम दिया ।
एक बार का ही किस्सा तमाम था मगर 
अब हर प्याले ने मौत सा अंजाम दिया ।।

पल पल मर कर भी जिंदा हूँ
जैसे मुझे हर घूंट ने जीवनदान दिया ।
झूमती नहीं है राहें झूमती नहीं है मंजिलें मगर 
झूमते मेरे कदमों ने ही मुझे लहूलुहान किया ।।

अकेला था मैं सहारे की न थी तलाश 
रुष्ट था ज़िन्दगी से उसके खिलाफ मैंने बयान दिया ।
तिल टिल होती तेरी बर्बादी देखी मैंने मगर 
तुझको न समझाया मैंने क्यूँ न इस पर ध्यान दिया ।।

अब बर्बाद हो गए हम दोनों ही 
सारा तन बदन इस मीठे जहर की आग से खाक किया । 
अब खून में रच बस गया है मगर 
फितरत से ये है मजबूर इतना इसने हमें नापाक किया ।।
~'~hn~'~
(Request to all drinker please don't force someone or your new friend to accompany you)

Wednesday, January 30, 2013

माँ तेरे आँगन में

Today its about to one and half month passed since the shameful and outraged incident....I am still Sad and feel the pain inside and outside.... my heart and mind are still moaning....nothing has changed or society still in shock like me and still trying to sink this ghastly gang-rape....

Today is second blogoversary of my blog... but i m not in a mood to celebrate it...mixed feelings of sadness, pain, shame and outrage continue to come back and back again and again.... who to blame...those assailants, those circumstances, our system, our law and order, our leaders, our society, our mindset....who...???

Some of us still blame those six evils..some of us blame system...some of us blame law and order..some of us blame society and its mindset...even some of us still think its victim's mistake to went out with her male friend to watch late evening movie show...some of us blame her costumes/outfit..her conduct...or some of us blame the alcohol and male hormones...No one here to blame himself..his own thinking...ourselves and our mindset..always blame others...No one want to hear the real victim...

I know some people forgotten the incident and move on with their daily up and down life.....they doesn't really care about aftereffect...but some people are still there continuing their protest on Jantar-Mantar...they really want a change.....a big real change...not in capital of the country but in whole country....change in law and order..change in system...

but about us, in our own house...our daily life...our personal life...don't we want to change them...this big real change shouldn't be needed there...

Well i am not a leader or so called big personality to change the society and every house in society...but still being a girl/woman i want to be heard...i want to be respect..i want to be free as free as boys/men are...so friends i want to share some inner voice of my heart and mind on behalf of every victim of rape/gang rape/sexual harassment and every women...


माँ तेरे आँगन में

माँ तेरे आँगन में 
बहुत शोर है
माँ तेरे आँगन में 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
कौन सुनेगा मेरी पुकार 
माँ तेरे आँगन में

तेरे बेटे की खुशियों में बजती थालियों का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन खुश होगा मेरी नन्ही मुस्कानों पर
माँ तेरे आँगन में 

तेरे बेटो की किलकारियों का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में
कौन देखेगा मेरी अठखेलियाँ को
माँ तेरे आँगन में

तेरे घूँघट से नापे जाते शर्म मान सम्मानों का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन भाव करेगा मेरी आखों से झलकते सम्मानों का 
माँ तेरे आँगन में

तेरे पूर्वजों की रीती रिवाजों का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन खोलेगा बंद दरवाजों को
माँ तेरे आँगन में

तेरे बड़े बुजर्गों की नसीहतों का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन सुध लेगा मेरी हसरतों का
माँ तेरे आँगन में

तेरे उन् ज्ञान पंडितों के गिसे पुराने पोथे उपदेशों का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन अपनाएगा नए विचारों की धाराओं को 
माँ तेरे आँगन में 

तेरे पति की पतंग की डोर का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन सराहेगा मेरी ऊची उड़ान को 
माँ तेरे आँगन में 

तेरे आँगन में होती पंचों की मनमानी का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन शरण देगा दो प्यार करने वाली जवानी को 
माँ तेरे आँगन में 

तेरे पुरुष प्रधान संस्कारों का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन मानेगा स्त्री के अल्हंकारों को
माँ तेरे आँगन में 

तेरे सामने दिन रात गूंजती गालियों का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन बदला लेगा उन गालियों में होता मेरा अपमानों का 
माँ तेरे आँगन में 

तेरे खुद की असुरक्षा का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में
कौन सोचेगा मेरी सुरक्षा का 
माँ तेरे आँगन में 

तेरे बदन पे पड़ते बीडी शराब के निशानों का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन मलहम लगाएगा दिल के घावों पे 
माँ तेरे आँगन में 

हवस की भूख मिटाते उन दरिंदो की बेशर्मी का 
बहुत शोर है 
बहुत शोर है 
माँ तेरे आँगन में 
कौन रखेगा हिसाब हुए जो मेरे साथ कुकर्मों का 
माँ तेरे आँगन में 
~'~hn~'~
(Dedicated to all rape victims especially Delhi gang-rape victim and to all women who faced any kind of gender discrimination ....
Written after "Delhi Gang-Rape--16th Dec 2012")

Thursday, December 6, 2012

गुस्ताख दिल

रोका बहुत अपने गुस्ताख दिल को,
फिर भी तुम्हे देखते ही ये रुका।

कभी न झुखने दिया किसी के आगे जिसे,
वो जिद्दी घमंडी खुद तेरे आगे ही झुका।

समझाया भी बहुत इस नासमझ को,
पर तेरे इशारे न जाने कैसे पलभर में समझा।

सिखाया पढाया सब दुनियादारी का सबक इसे,
प्यार का पाठ पढ़ सब दिया इसने ऐसे भुला।

~'~hn~'~

Tuesday, November 27, 2012

दिल का गुलाम

रोज़ होती हैं धूप से बातें,
छांव की भी खेर खबर रखते हैं हम।

खोजतें हैं हर जगह दिल का खोया चैन,
सुख को भी दुआओं में माँगा करते है हम।

ग़मों के हजारों कडवे घूँट पीते है ख़ुशी से,
अपनी छोटी सी छोटी खुशियों का भी हिसाब रखते हैं हम।

दुश्मन तो कोई भी नहीं हैं हमारा जानतें हैं,
दोस्तों की भी गिनती बेहिसाब रखते हैं हम।

दिल के कमरे में असीम दुनिया बसाई रखती है,
दिमाग की भी आज़ाद उड़ान की डोर भी नहीं बाधते हैं हम।

कोई कहता है हमें बेफिक्र मनमौजी मतवाला,
पर खुद को किस्मत का कंगाल और दिल का गुलाम मानते हैं हम।

~'~hn~'~

Thursday, October 18, 2012

मगर

ये कविता एक ऐसी महिला की है जो अपनी शादी को टूटते देख चुकी है। लव मैरिज को ले के जो सुन्दर सुन्हेंरे सपने संजोय थे कभी वो सभी शादी के कुछ सालों बाद ही खाख होते देखे है उसने। फिर कुछ और साल अपने बेरहम पति की बेरहमी सहन की है उसने। इतना सब सहा तो बस अपनी शादी को बचाने के लिए। अपने बच्चों के लिए। अपने पुराने प्रेमी के लिए। दुनिया के लिए। अपने प्यार के लिए। अपनी प्यार भरी यादों के लिए। और अब वो अपनी शादी जो की कबकी मर चुकी है उसकी लाश को आखरी विदाई दे रही है उसकी आँख फिर भी नम है मगर उसके पति के मुख पर एक शीकन भी नहीं ऐसा क्यूँ। क्या सच में वो उसे भूल गया है। उसके प्यार को भूल गया है। उसके दिल में कुछ सवाल है पूछना चाहती है अपने पति से। उसी के इन् सवालों को मैंने अपनी कविता में उतारा है तो पेश है वो दर्द भरी कविता।






जो दिल दिया था तुम्हे वो तो तुमने वापस दे दिया,
मगर वो दिन जो साथ थे बिताए कैसे वापस दोगे ।






चाँदनी रातों के हसीन सपने तो तुम साथ ले गए,
मगर उन रातों की प्यार भरे रंगीन अफ़साने कैसे ले जाओगे ।





मेरे लिए खुद के बनाए हजारों तारीफों के पुल तो तोड़ दिए,
मगर यादों में बसे वो सुहाग की सेज के महकते फूल कैसे तोड़ोगे ।






बहकते क़दमों की वो छाप धड़कते दिल के ज़ज्बात तो तुम भुल गए,
मगर सुलगती रात में हमारे प्यार की वो सौगात को कैसे भुलाओगे ।






ज़माने भर के सामने दिए सात वचन तो तुम कागज़ पे सिहायी कर तोड़ गए,
मगर मेरे दिल की अदालत में लिए हजारों वादों का समन कैसे तोड़ोगे ।






पत्नी होने और तुमको पति कहने का हक तो तुम मुझसे ले गए,
मगर बच्चों से उनके पिता होने और पापा कहने का हक कैसे लेजाओगे ।
~'~hn~'~

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