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Thursday, October 18, 2012

मगर

ये कविता एक ऐसी महिला की है जो अपनी शादी को टूटते देख चुकी है। लव मैरिज को ले के जो सुन्दर सुन्हेंरे सपने संजोय थे कभी वो सभी शादी के कुछ सालों बाद ही खाख होते देखे है उसने। फिर कुछ और साल अपने बेरहम पति की बेरहमी सहन की है उसने। इतना सब सहा तो बस अपनी शादी को बचाने के लिए। अपने बच्चों के लिए। अपने पुराने प्रेमी के लिए। दुनिया के लिए। अपने प्यार के लिए। अपनी प्यार भरी यादों के लिए। और अब वो अपनी शादी जो की कबकी मर चुकी है उसकी लाश को आखरी विदाई दे रही है उसकी आँख फिर भी नम है मगर उसके पति के मुख पर एक शीकन भी नहीं ऐसा क्यूँ। क्या सच में वो उसे भूल गया है। उसके प्यार को भूल गया है। उसके दिल में कुछ सवाल है पूछना चाहती है अपने पति से। उसी के इन् सवालों को मैंने अपनी कविता में उतारा है तो पेश है वो दर्द भरी कविता।






जो दिल दिया था तुम्हे वो तो तुमने वापस दे दिया,
मगर वो दिन जो साथ थे बिताए कैसे वापस दोगे ।






चाँदनी रातों के हसीन सपने तो तुम साथ ले गए,
मगर उन रातों की प्यार भरे रंगीन अफ़साने कैसे ले जाओगे ।





मेरे लिए खुद के बनाए हजारों तारीफों के पुल तो तोड़ दिए,
मगर यादों में बसे वो सुहाग की सेज के महकते फूल कैसे तोड़ोगे ।






बहकते क़दमों की वो छाप धड़कते दिल के ज़ज्बात तो तुम भुल गए,
मगर सुलगती रात में हमारे प्यार की वो सौगात को कैसे भुलाओगे ।






ज़माने भर के सामने दिए सात वचन तो तुम कागज़ पे सिहायी कर तोड़ गए,
मगर मेरे दिल की अदालत में लिए हजारों वादों का समन कैसे तोड़ोगे ।






पत्नी होने और तुमको पति कहने का हक तो तुम मुझसे ले गए,
मगर बच्चों से उनके पिता होने और पापा कहने का हक कैसे लेजाओगे ।
~'~hn~'~

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