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Saturday, October 15, 2011

अनजाना सा रिश्ता (part 3)

Next Weekend

सिया और मैं institute  के हरे भरे मैदान में बैठे अपने नोट्स arrange करते करते बाते कर रहे थे....
"तो तुम्हारी और माहि की पिछली डेट भी हमेशा की तरह अच्छी ही गयी.....क्यूँ ?" सिया ने मुझसे पुछा..
"ह्म्म्म....वो जो कपडे पहने थे ना उसी के गिफ्ट किये हुए थे...सो उन्हें मुझे पहने देखा तो बहुत खुश हुई....मैं भी खुश ही था....पर...." कहते कहते मैं अचानक रुक गया...मन की आवाज़ ने मुझे ऐसा करने से रोक लिया..."जैसा मैं सोच रहा हूँ ऐसा शायद हो ही नहीं....शायद माहि सच कह रही हो.....जैसे मैं पढाई में busy रहता हूँ .....वो भी कहीं busy रहती हो...वो मुझे जानभूझ कर ignore क्यूँ करेगी..."

"पर क्या ....कुछ हुआ क्या...कोई प्रॉब्लम..." सिया ने अपनी आँखों को और बड़ा करके मेरी तरफ देखते हुए पुछा..
"कुछ नहीं....मेरी छोड़ो तुम बताओ तुम भी तो पार्टी में गयी थी सजधज कर....क्या हुआ पार्टी में"....मेरी सजधज शब्द को जोर देके कहने पे सिया ने एक पल मुझे घूरा....फिर बोली.."नहीं..ऐसा कुछ खास नहीं....मेरी cousin को लगता है मुझे अपने लिए एक boyfriend ढूंढ लेना चाहिए....उसने कई लड़कों से भी मुझे मिलवाया...पर उसे क्या पता मैं किसी भी लड़के की सपनो आने वाली लड़की नहीं हूँ......मुझे कोनसा लड़का अपनी गर्ल फ्रेंड बनाएगा...खेर छोड़ो...मुझे वैसे भी ये प्यार व्यार की कहानियां नहीं जचती...."

सिया की यह बात मुझे भावेश की याद दिला गयी.....और मैंने फट से बोला.."नहीं....ऐसा नहीं है....सिया तुमको किसने कहा की कोई तुमको अपनी गर्ल फ्रेंड बनाना नहीं चाहेगा...अरे तुम स्मार्ट हो...तुम intelligent हो...देखो हर लड़के की पसंद अलग अलग होती है..हर कोई दुबली-पतली, सुंदर, गोरी, सजधज के रहने वाली लड़की को पसंद नहीं करता...हर लड़के के लिए उसकी टाइप की लड़की अलग होती है...कोई simple ...तो कोई नखरे वाली...तो कोई खामोश...तो कोई चंचल लड़की को पसंद करता है...तो तुम ऐसा बिलकुल भी मत सोचा..कभी न कभी कोई तुमको भी चाहेगा....बस इंतज़ार करो उसका...जो तुम्हारे दिल के तारों को छेड जाए..."

"ओह्ह..philosopher जी....बस कीजिये....मुझे भी पता है...कोई न कोई हर किसी के लिए बना है....और वो जल्द ही मेरी ज़िन्दगी में आने वाला है....और न भी आया तो मेरी माँ है ना उसे मेरी ज़िन्दगी में लाने के लिए..कोई अच्छा लड़का ढूंढ ही लेगी मेरे लिए...." एक सांस भरते हुए सिया बोली....
"अपनी माँ क्यूँ कष्ट देती हो..मैं हूँ न...मैं ढूंढ दूंगा..."
"अच्छा तुमको मेरी पसंद पता भी है..??"
"हम्म....तो बताओ कैसा लड़का पसंद है....मेरे जैसा handsome चलेगा या फिर कोई simple भोंधू टाइप"

"shut-up you ..." मुझ पर जोर से नोट्स मरती हुई सिया बोली....मैं साफ़ उसके गालों पे आई लाली को देख सकता था...पहली बार सिया को ऐसे देख रहा था मैं....सच कितनी भोली और मासूम लग रही थी...अपने रोबदार, समझदार और चंचल वाले व्यक्तित्व से बिलकुल अलग...वो अचानक से उठ गयी और अपने हॉस्टल की और चलने लगी...मैं वहीँ बैठा उसकी उस भोली-भाली मुस्कराहट को अपने दिल और आँखों में बसाने लगा...क्या पता फिर उसे इस रूप में देखने को मिले न मिले...

"तुम से ज्यादा Handsome होना चाहिए..वरना तुम भी कोई बुरे नहीं हो...अगर माहि नहीं होती तुमको बॉय फ्रेंड बना लेती..." सिया रुक कर फिर पलट कर बोली....एक बार तो मेरा दिल मेरे मुह में आ गया हो जैसे...पर मैं सिया की इस आदत को जानता था....हम अक्सर ऐसे ही एक दुसरे को tease करते रहते थे....
"तुम कहो तो माहि को छोड़ दूं तुम्हारे लिए..." मैं भी उसके साथ शामिल हो गया...और उठ कर उसकी तरफ बढने लगा..

"नहीं...रहने दो मुझे किसी का बसा बसाया घर तोड़ कर अपना घर नहीं बसाना..." सिया बोल तो ऐसे रही थी जैसे मैं सचमुच माहि को छोड़ उसके साथ घर बनाने चला हूँ...मुझे मेरे बचपन में खेले घर-घर खेल की याद आ गयी....जहाँ अक्सर मैं किसी लड़की के साथ एक काल्पनिक घर बसाता था...और एक फिल्मी कहानी की तरह हम ख़ुशी-ख़ुशी एकसाथ रहते थे.....टी-पार्टी, बच्चो(गुडो-गुडी) की शादी....और ना जाने क्या क्या scene act किया करते थे...कभी इस लड़की के साथ तो कभी उस लड़की के साथ....रोज़ नयी wife होती थी....बचपन में खुशाल घर संसार सबकी कल्पनाओं में होता था....पर अब हम बड़े हो गए है..फिर भी मेरा और सिया एक काल्पनिक कहानी बनाते थे रोज़ नयी कहानी...बस मैं और वो और एक सुंदर खुशाल घर ही happy ending होती थी...या तो मैं बच्चा था या वो बच्ची थी या फिर हम दोनों....पता नहीं...पर यह खेल अब हमारा पसंदीदा खेल बन चूका था....कोई इस खेल को जानबूझ कर शुरू नहीं करता था..पर पता नहीं क्यूँ बस हो जाता था...एक दुसरे को tease करना आदत सी ही बन गयी थी...पर हम दोनों ही जानते थे की यह बस एक खेल भर ही है...असलियत सच्चाई तो येही है की हम बस अच्छे दोस्त हैं...

तभी सामने से आती सिया की room-mate और बेस्ट फ्रेंड, मुझे छोड़ कर सिया की वो ही अच्छी दोस्त थी, सुहाना ने बहुत उत्सकता से कहा... "सिया....तुम यहाँ हो....hi पियूष....चलो अच्छा हुआ दोनों साथ ही मिल गए...तुमको याद है कपिल का birthday  आ रहा है और वो हमें grand treat देने वाला है....और उसके birthday अगले Sunday को है...तो वो हम सबको Saturday morning ही अपने फार्म हाउस ले जा रहा है वही उसकी birthday पार्टी होगी.....हमें बस एक bus का arrangement करना है....तुम चाहो तो अपने किसी फ्रेंड को साथ लाना चाहते हो तो उसे भी ला सकते हो..."
"ओह्ह हाँ..मैं तो भूल ही गयी थी....की Mr Show Off का birthday आ रहा है..."
"सिया....तुम भी ना....अरे वो show off कर रहा है करने दो हम वहां मस्ती करेंगे.... इसी बहाने थोड़ी outing  भी हो जाएगी...just like a college trip ..." मैंने सिया से कहा....
"नहीं यार...तुम लोग जाओ...मुझे नहीं जाना" 
"अरे सिया...सब जा रहे है..तुम नहीं जाओगी तो क्या यहाँ अकेले वीरान institute में मंडराओगी क्या?....चलो यार सभी साथ होंगे मज़ा आयेगा...लड़के-लड़कियां सब साथ में....ऐसा मौका नहीं मिलेगा.." सुहाना ने भी जोर दिया....
"ठीक है...मुझे पता है तुम वहां किसके साथ मज़ा करोगी..." सिया ने फिर सुहाना से अपने पसंदीदा चुटकी लेने वाले अंदाज़ में कहा...हलाकि मैं कुछ समझ नहीं पाया..

Birthday के एक दिन पहले-(The Saturday Morning)

सभी दो दिन की इस पार्टी के लिए तैयार हो कर institute के main gate पे आ गए....bus का इंतज़ार कर रहे थे.....कुछ नए चेहरे भी थे...जो शायद हमारे साथ नहीं पढते थे... मैंने सोचा शायद कपिल के कुछ दोस्त होंगे....उसकी भी कितनी girl-friends  है इन्ही में से कई उसकी girl-friends रह चुकी होंगी....

दो bus आ गयी थी...मैं, भावेश, सुहाना, सिया और हमारे कुछ दोस्त सभी एक बस में चढ़ने लगे...सबसे पहले भावेश ने जा कर लास्ट सीट पे कब्ज़ा कर लिया.....फिर सिया को आता देख कर अपने साथ बैठने का इशारा कर बोला..."आओ...आओ..."...मगर सिया ने उसके आगे वाली सीट ले ली..."no thanks ...मैं और सुहाना साथ बैठेंगी" सिया ने भावेश के उड़ते पर फिर काट दिए....मैं भावेश के पास आ के बैठ गया...

पीछे आ रही सुहाना भी कम नहीं थी...सिया की सीट की दूसरी और जो सीट थी वहां जा कर बैठ गयी और बोली "नहीं सिया मैंने अर्जुन के साथ बैठने का वादा किया है so सॉरी" और इतना कहते ही अर्जुन भी सुहाना के साथ बैठ गया...अब मैं सिया के लटके चेहरे को देख उदास हो गया.. और भावेश के पास से उठ कर सिया के पास जा बैठा....और बोला "कोई नहीं मैं हूँ न.." सिया का चेहरा एकदम खिल उठा...

"पता होता सुहाना अपने boyfriend को भी ला रही है तो मैं कभी नहीं आती" मैं जानता था वो इस ट्रिप पे आना नहीं चाहती थी..."वो उसका boyfriend है..." मैंने सिया से पुछा..."तुमको नहीं पता पिछले चार हफ्तों से दोनों date कर रहे है.....दोनों net पे मिले थे...chating, social networking और फिर कुछ dates और प्यार होना ही था......आजकल यही तो करती रहती है मैडम प्यार..प्यार.प्याआआआआर ....सातवे आसमान पे उडती रहती है हमेशा....उफ़ भगवान्....मुझे कभी प्यार का रोग न लगे.."

"कोई नहीं मैं तो हूँ न......उसका boyfriend है तो तुम भी अकेली नहीं हो...मैं हूँ न तुम्हारा boyfriend ...official न सहीं खेल खेल में ही सही...." मैं उसको cheer up करने की कोशिश कर रहा था...सारा सफ़र एक साथ जो बैठना था....

बस चल पड़ी...खिड़की से ठंडी ठंडी हवा आने लगी...और सिया के खुले बालों की झुल्फे मेरे चेहरे पे लहराने लगी....सच कहू तो बहुत अच्छा लग रहा था....पर इस से मुझे माहि के लम्बे बालों की भी याद आ गयी...."मुझे पता होता की हम अपने boyfriend और girlfriend को भी ला सकते है तो मैं माहि को भी ले आता.."
"क्यूँ एक girlfriend से दिल नहीं भरता तुम्हारा जानू...." जैसे ही सिया ने कहा हम दोनों ही खिलखिला के हंस दिए...."jokes apart  ....माहि को भी ले कर आना चाहिए था...क्यूँ नहीं आई वो" सिया ने मुझसे पुछा....
"वो अपने fashion designing course में organised किसी workshop पे गयी हुई है....सो मैंने उस से पुछा ही नहीं..." मैंने सिया को बताया.....
"चलो अब कोई game खेलते है...." भावेश ने सीट पे खड़े हो कर सबसे कहा.....फिर हमने कुछ games खेली जैसे अन्ताक्षरी, Dumb Charades and other guessing games ....  जब भी सिया या मेरी बारी आती तो हम आराम से एक दुसरे के इशारो को समझ जाते...पता नहीं कैसे पर वो मेरा guess कर लेती और मैं उसका...हम दोनों की chemistry देखते ही बनती थी.....

खेलते खेलते समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला...अब आधा दिन बीत चूका था.....highway पे एक ढाबे पे कपिल ने सबको खाना खिलाया...और ड्राईवर से बस तेज़ दौड़ाने को कहा...हम फिर आ अपनी अपनी जगह बैठ गए.....खाने के बाद सबको नींद सी आने लगी...और बस में अचानक से शान्ति सी छा गयी...मैंने भी आँखों को आराम देने की सोची...थोड़ी देर बाद खिड़की से आती ठंडी ठंडी हवा ने मेरी नींद तोड़ी...पास बैठी सिया को देखा तो वो भी मीठी नींद में सो रही थी...उसने अपने बाल बाँध लिए थे...पर उसे भी ठण्ड लग रही थी...तो मैंने उठ कर खिड़की बंद करने की सोची...मैं खिड़की बंद कर ही रहा था तभी बाहर बारिश होने लगी....और बारिश की हलकी फुआर और कुछ बूंदे सिया के गालो पे पड़ी... जिसने उसको जगा दिया..."ह्म्म्म.....wow !!!!! बारिश....वो भी बिन मौसम की बारिश...खिड़की खुली रहने दो पियूष...मुझे ऐसी बारिश अच्छी लगती है...." सिया ने धीरे से कहा...

"मगर मुझे ठण्ड लग रही है...इसलिए बंद कर रहा हूँ" मैंने सिया को कहा... "ओह्ह...ठीक है रुको...खिड़की को रहने दो...तुम बैठो मैं अभी कुछ करती हूँ......" कहते हुए सिया सीट पे खड़ी हो के ऊपर रखे अपने बैग में से कुछ निकालने लगी...मैं वापस अपनी जगह बैठ गया....आस पास देखने लगा..कुछ लोग सो रहे थे और कुछ बारिश का मज़ा ले रहे थे....भावेश भी cd-player से गाने सुन रहा था...अचानक भावेश की आंखें बड़ी हो गयी और एक अजीब सी चमक आ गयी उसकी आँखों पैर...मैंने देखा वो सिया की तरफ देख रहा था.....

सिया अपने बैग से कुछ निकाल रही थी... इसलिए उसके हाथ ऊपर की और स्ट्रेच हो रहे थे....और इसी वजह से उसका पिंक टॉप ऊपर हो गया था...और उसकी low waist jeans भी और नीचे हो गयी थी...उसकी कमर और कमर से थोडा नीचे का थोडा सा बदन दिख रहा था....सच में उसकी पतली गौरी कमर बहुत सुंदर लग रही थी....और उसकी कमर पे एक सुंदर सा तिल बस गज़ब ढा रहा था....मेरे भी पसीने छुट रहे थे...मैं हडबडाते हुए उठा और बोला.."सिया मैं निकाल देता हूँ.... क्या चाहिए..तुम बैठ जाओ" सिया वापस बैठ गयी तब मैंने एक गहरी सांस ली और उसके बताये बैग में से एक चादर निकाल कर सिया को दे दी..."मेरे लिए नहीं तुम्हारे लिए तुमको ठण्ड लग रही है ना" सिया ने मुझे वापस चादर देते हुए कहा...

"ठण्ड तो तुमको भी लग रही थी....अपने लिए दूसरी निकाल लेता हूँ.."
"तुम भी चादर लाये हो क्या? मैं तो एक ही लायी हूँ अपने लिए...मुझे वैसे ज़रुरत नहीं है..मुझे बारिश अच्छी लग रही है...ठंडी ठंडी हवा भी"
"नहीं मैं तो नहीं लाया..ठीक है..पर जब भी तुमको ठण्ड लगे ले लेना...हम शेयर भी कर सकते है बहुत बड़ी चादर है..." कहते हुए मैंने चादर ओड़ ली...
"पियूष....तुम जानते हो मैं प्यार व्यार में विश्वास नहीं करती पर कभी कभी ऐसी बारिश मुझे और मेरे दिल को हिला कर रख देती है....मन करता है की काश कोई हो जिसके सीने पे सर रख कर इस बारिश का मज़ा लूं....वो मुझे कसके अपनी बाँहों में ले...उफ़...मैं भी ना जाने क्या सोचने लगी..देखा बारिश मुझ पर कैसा जादुई असर करती है...तुम बताऊ तुम इस मौसम में माहि को मिस नहीं कर रहे.."
"हाँ...माहि को तो मिस कर रहा हूँ...अभी वो तुम्हारी जगह बैठी होती तो मैं उसे अपनी बाँहों में भर लेता और फिर ....और फिर..." कहते कहते रुक गया मैं....फिर ऐसे ही मस्ती में बोला "वो नहीं तो क्या हुआ तुम तो हो"....हम लोग फिर एकसाथ हंस दिए....

थोड़ी देर बाद बारिश तेज़ हो गयी और बहार अँधेरा सा हो गया...जैसे सूरज को बादलों ने ढँक दिया हो.....सिया ने खिड़की बंद कर दी...क्यूंकि बहुत तेज़ की ठंडी ठंडी हवा चल रही थी...पर फिर भी आगे वाली सीट की खिड़की खुली होने की वजह से ठंडी हवा सिया को लग रही थी...यह देख मैंने उसे चादर का एक हिस्सा दिया...और अपना हाथ उसके पीछे गर्दन पे रख दिया....मेरे हाथ का सहारा मिलते ही पता नहीं कब उसने अपना सर मेरे कंधो पर  रख दिया....मैंने भी अपनी बाँहों को और कस दिया और उसको पूरा अपनी बाँहों में ले लिया...पता नहीं मुझे क्या हो गया था..या तो मौसम का जादू या फिर सिया की उन् बातों का असर था...मैं सच में उसकी चलती साँसों को महसूस कर सकता था...और शायद वो भी मेरी गरम सांसों को महसूस कर रही हो....

"अगर माहि होती तो...तो तुम.." सिया ने फिर धीरे से कहा...
"हम्म...माहि होती....ह्ह्ह्ह माहि होती तो मैं क्या बताऊ क्या क्या होता....शायद एक long kiss या तो वो मुझे देती या मैं खुद ही ले लेता...." इसके आगे मुझसे कुछ कहा नहीं गया...
"माहि बहुत खुशकिस्मत है तुम उसे मिले....कितना प्यार करते हो तुम उस से...सच तुम्हारा प्यार देख कर ही लगता है..काश मुझे भी कोई इतना प्यार करता....वो कहीं और होता...कोई और लड़की उसकी बाँहों में यूह होती फिर भी वो मुझे ही याद करता..." यह सुनते ही मेरे दिल और दिमाग दोनों जगह घंटियाँ सी बजने लगी...और मुझे लगा मुझे ज्यादा react नहीं करना चाहिए...मैं सिर्फ माहि का ही हूँ...सिया मेरी अच्छी दोस्त है बस......मन तो हुआ एक ज़टके से उसे दूर कर दूं...इस से पहले की मेरा मन डोल जाए....चाह कर भी मैं सिया को अपनी बाँहों से दूर नहीं कर पाया...

फिर तो जैसे सारा रास्ता ऐसे ही कटा..ना तो बारिश रुकने का नाम ले रही थी और ना ही हम लोग एक दुसरे से दूर हो पा रहे थे...सिया कभी आंखें बंद करती तो कभी खोल लेती...मेरा भी येही हाल था..कभी मैं सोने की नाकाम कोशिश करता तो कभी आगे वाली सीट की खिड़की बंद करने की सोचता....मगर मन के एक कोने में मुझे अच्छा भी लग रहा था....माहि की याद भी जो नहीं आ रही थी.....मैं भी इस ट्रिप पे नहीं आना चाहता था...चाहता था माहि के साथ दो दिन बिताऊँ मगर उसके workshop की वजह से...फिर मैं भी मन मार कर आ ही गया..पर यह नहीं पता था..की यह अनचाह सफ़र ऐसी roller coaster ride साबित होगी...काश की माहि की जगह सिया ही मेरी girlfriend होती......तो कमसे कम मुझे इतना uneasy सा महसूस नहीं होता बल्कि मैं इसका भरपूर मज़ा ले पाता.....

करीब 7 बजे हम कपिल के फार्म हाउस पे पहुचे....सभी सफ़र से थके हुए थे...कोई भी पार्टी के मूड में नहीं था..तो सभी ने रात के खाने के बाद अपने अपने कमरे में सो जाना ही ठीक समझा...कपिल ने सब इंतजाम अच्छे किये हुए थे...जो एक साथ एक कमरे में रहना चाहता है उनके लिए एक कमरा और जो अलग अलग कमरा चाहता है उनके लिए अलग...कुछ कमरे बाहर कैंप टेंट लगा के भी बनाये हुए थे....कुछ टेंट्स बारिश से ख़राब हो गए थे...तो कुछ ठीक-ठाक थे.....मैंने एक टेंट अपने लिए ले लिया....मैं भावेश के साथ नहीं रहना चाहता था...क्यूंकि मुझे डर लग रहा था कहीं बस में जो हुआ उसने सब देख सुन न लिया हो..आखिर हमारी पीछे वाली सीट पे ही तो था वो.....

सिया को उसके कमरे तक छोड़ने गया..तो लगा जैसे सिया कुछ कहना चाहती है पर नहीं कह पा रही....मुझे भी लगा मैं भी उस से कहूँ की यह सब जो बस में हुआ....मुझे अच्छा लगा...मगर मैं कह नहीं पाया...और उसे उसके कमरे में छोड़ कर अपने टेंट में आ गया....रात भर सोचता रहा की जो बस में हुआ वो क्या था...मैंने तो कभी सिया के बारे में ऐसा नहीं सोचा...फिर मुझे भावेश का सिया के लिए आकर्षण क्यूँ अच्छा नहीं लगता...क्यूँ सही नहीं लगता.....मैं क्यूँ सिया को भावेश से बचाना चाहता हूँ....सिया खुद भी तो भावेश से निपट सकती है...भावेश कभी उस से कुछ कह नहीं पायेगा...और ना ही कभी सिया समझ पायेगी...या फिर समझती भी हो...और न समझने का नाटक करती हो...नहीं...सिया और भावेश...नहीं..मैं कल्पना भी नहीं कर सकता दोनों को एकसाथ....तो क्या सिया ने मेरे बारे में कुछ ऐसा सोचा है....मुझे उस से पूछना चाहिए...या फिर नहीं पूछना चाहिए...अब जो हुआ सो हुआ अब आगे क्या...आगे क्या अब पहले की तरह हमारी दोस्ती रहेगी या हम पहले जैसे ही एक दुसरे से मिलेंगे...बाते करेंगे....O GOD यह क्या हो गया..क्या होगा हमारे दोस्ती के रिश्ते का...माहि का...नहीं मैं बस माहि का ही हूँ...माहि मेरी मंगेतर है... सिया मेरी दोस्त...हमें दोस्त ही बने रहना चाहिए...अगर सिया ऐसा वैसा कुछ सोच रही है तो मुझे उसकी गलत्फेमी दूर करनी पड़ेगी...कल ही बात करूँगा उस से इस बारें में..


to be continue....
~'~hn~'~

Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

2 comments:

Simran said...

Hmmm, So romantic! :)
Julfo ka ishara aur saanso ka ehsaas..Lovely

Hmm,It's turning to mystery :D
Waiting for the next part..eagerlyyyy :)

Hema Nimbekar said...

@Simran

Yeah...mystery...but lots of twists...thanks for reading sweety...

How u find my blog??

लिखिए अपनी भाषा में

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