भोर भये घर की चोखट पर
गोरैया रानी चहचहाती थी |
याद है मुझे जैसे वो हमको
सुबह हो गयी ये बताती थी ||
सच कहूँ तो तुम्हारी वो चंचलता
मुझको सदा से ही भाती थी |
हाँ माँ को थोड़ी होती आपति
कि क्यूँ तुम इतना शोर मचाती थी ||
रोज़ आँगन में तुम कभी सुखी मिटटी
तो कभी बारिश के बचे पानी में नहाती थी |
कभी तुम्हे मैं तिनका तिनका जोड़ने के
कौन चिड़िया है कौन चिड़ा
यही मैं कभी न समझ पाती थी |
फिर माँ की ओर देख मैं किंचित मन से
बस यही पूछती ही रह जाती थी ||
गर्मियों की छुट्टी तुम्हारे संग ही तो कट जाती थी |
तुम ही थी मेरी संघी साथी आँगन में
तुमसे ही तो मैं दौड़ लगाती रह जाती थी ||
माँ और मैं होते थे परेशान जब माँ के
सुखाने को रखे अनाज को तुम चुगने आ जाती थी |
याद कर दादा जी के खाने की थाली का
पहला टुकड़ा तुम ही तो खा जाती थी ||
आँगन में घोंसला बनाती जब
तुम चोंच में तिनका दबाये आती थी |
बड़ी खिड़की हो या छोटा जंगला
हर तरफ मैं तुमको पाती थी ||
पर तुम कम ही दिखती है
क्या भूल गयी है यहाँ का रास्ता |
हाँ मालूम है अब वो खुला आँगन
नहीं न ही खुली हवा का कोई है पता ||
सुना है तुम अब विलुप्त होने वाली
जातियों में गिनी हो जाती |
मनुष्य के ही फेलाये प्रदुषण
में तुम घुट सी हो जाती ||
तुम मुझको तो सदा ही याद रहोगी
बचपन की यादें ऐसे ही नहीं जाती |
और एक टोली भी है जो तुमको याद कर
तुमको बचाने की मुहीम है चलाती ||
उम्मीद करती हूँ तुम एक बार फिर
दिखोगी मुझे मेरे चोखट पर चहचहाती |
और मिलूंगी एक दिन मैं तुम्हे
अपने बच्चो को तुम्हारी कहानी सुनाती ||
~'~hn~'~
16 comments:
wow .atayant sundar ati uttam.. i like the way u write nd it keeps the msg hidden inside . that omg..wud like to do frndship wid u
dekhte hi dekhte chidiya lupt pray janver ho gai hai
sunder tasviron ke sath chidiya ki yad dilane ke lie aabhaar
backdoor entry-laghukatha
Wow..beautifully woven each and every line..Very sweet description of your attachment..
@some unspoken words..
thx dear...hey we are friends...anyone who understand ur hidden msg in ur write up/poem/story is a friend...
aren't we? we connect somewhere...by thoughts and views....by heart...
so hue na hum dost..
keep in touch..
keep smiling...
@dilbag virk
dhanyavaad dilbag ji...aapko meri kavita acchi lagi..aabhaar
aur apke laghukatha ke link ke liye bhi shukriya..
@simran
so sweet of u sweetie...
actually mein maine aur jyadatar logo ne apna-apna bachpan goraiya chidiya ke sang hi guzara hai..
aur ye meri kuch yaadein hai...aajkal to ek do hi mushkil se dikhti hai..mere bachpa mein to mere ghar ke ass pass kabutar aur iss chidiya ka tanta laga raheta tha..
Wow!! So lucky you are di :)
You got time to spend times with them... Must be a great experience :D
so nice...with the hope that it won't extinct & our children & grand children would see them real not their pics...
hope that our grand children would see them real not their pics...
बहुत सुंदर पोस्ट..... हमारे आँगन की फुदकती गौरैया से जुडी पंक्तियाँ बेहतरीन हैं.....
@Simran
yeah i am lucky to have some sweet memories of that time....not only this chidiya..but catching different types of butterflies,locusts...watching chameleon....
even I had seen villages culture which now hardly can be experienced..though I was little but still now i can understand the difference between open, pleasant-breeze and pollution-free air and congested, hot(full of humidity) and polluted air...
cold cold water not from fridge but pot...that smell of mud..experience of joint family..
missed those days...
@shahin
thx dear....we all hope so...
@डॉ॰ मोनिका शर्मा
धन्यवाद मोनिका जी ...आपका मेरे ब्लॉग में बहुत बहुत स्वागत है...
उम्मीद है आप आगे भी अपने विचार यहाँ व्यक्त करने आती रहेंगी...आभार
great ,,,bahut sunder likha hai aapne, saarthal rachna ke liye abhinanadan
bahut bahut dhanyavaad amrendra "amar" ji....
.....WELCOME TO MY BLOG...
abhaar..
बहुत सुंदर कविता. Emotional हो गया पढ़के. बचपन की याद दिला दी जब घर के आंगन में आसपास चिड़िया ही चिड़िया दिखती थी.
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