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Sunday, February 6, 2011

अब यह जहाँ रहने लायक कहाँ रहा

 

अब यह जहाँ रहने लायक कहाँ रहा,
कहाँ वो भाई चारा कहाँ वो इंसान रहा |
वो प्यार माँ के लिए पिता के लिए स्नेह अब कहाँ रहा,
इतनी जमीन मेरी इतनी है तेरी धरती माता को बाँट इंसान रहा ||




जहाँ रहतें थे सब मिलजुल कर सब कहते थे हम एक है,
वही परिवार अब बट गया बोले आधा-आधा ही ठीक है |
यहाँ अब भाई भाई के खून का प्यासा है,
सबका प्यारा दुलारा तो अब सिर्फ़ पैसा है ||



जियो और जीने दो जैसे नारा अब कहाँ,
इंसानियत का कोई नही साथी हर मजहब के लोग जहाँ |
सब है करते अपने अपने धर्म की बातें यहाँ,
हिंदू रहे हिंदू मुस्लिम रह गए मुस्लिम यहाँ |
अब गुरुनानक जी और इशु मसी के बोल कहाँ,
सब इंसान कहते ख़ुद को पर इंसानियत है कहाँ ||


~'~hn~'~
(Written after 13 September 2008 Delhi bombings.... I was to upset at least 30 people killed and over 100 injured )

6 comments:

Simran said...

Very true and touching poem..
Remarkable one!!
And I liked the way that you inter-relate many things with your emotions :)

Keep Cheering the life and take care :)

Hema Nimbekar said...

thx dear...good to know that my poem connect your feelings with mine.....it reaches ur heart...
keep commenting dear....

Anonymous said...

Sahi baat he Hema.....Good one......

Hema Nimbekar said...

@lovelyharshal

Thank you Harshal...

Rimly said...

My hindi is a bit rusty but the essence of the entire poem was thought provoking. Loved it. It is sad but true, there is so little unity left amongst us people.

Hema Nimbekar said...

@Rimly
...WELCOME TO MY BLOG...
Thank you so much for your love Rimly....Lots of love...

How u find my blog??

लिखिए अपनी भाषा में

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