अब यह जहाँ रहने लायक कहाँ रहा,
कहाँ वो भाई चारा कहाँ वो इंसान रहा |
वो प्यार माँ के लिए पिता के लिए स्नेह अब कहाँ रहा,
इतनी जमीन मेरी इतनी है तेरी धरती माता को बाँट इंसान रहा ||
वही परिवार अब बट गया बोले आधा-आधा ही ठीक है |
यहाँ अब भाई भाई के खून का प्यासा है,
सबका प्यारा दुलारा तो अब सिर्फ़ पैसा है ||
इंसानियत का कोई नही साथी हर मजहब के लोग जहाँ |
सब है करते अपने अपने धर्म की बातें यहाँ,
हिंदू रहे हिंदू मुस्लिम रह गए मुस्लिम यहाँ |
अब गुरुनानक जी और इशु मसी के बोल कहाँ,
सब इंसान कहते ख़ुद को पर इंसानियत है कहाँ ||
~'~hn~'~
(Written after 13 September 2008 Delhi bombings.... I was to upset at least 30 people killed and over 100 injured )
6 comments:
Very true and touching poem..
Remarkable one!!
And I liked the way that you inter-relate many things with your emotions :)
Keep Cheering the life and take care :)
thx dear...good to know that my poem connect your feelings with mine.....it reaches ur heart...
keep commenting dear....
Sahi baat he Hema.....Good one......
@lovelyharshal
Thank you Harshal...
My hindi is a bit rusty but the essence of the entire poem was thought provoking. Loved it. It is sad but true, there is so little unity left amongst us people.
@Rimly
...WELCOME TO MY BLOG...
Thank you so much for your love Rimly....Lots of love...
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