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Friday, May 6, 2011

मसककली (part 2)

शिल्पा का कॉलेज का वो दूसरा ही दिन था. पहले दिन तो सिर्फ एक दुसरे का नाम ही जान पाए थे सब लोग....शिल्पा ने भी अपना नाम बताया और यह भी की स्कूल में सब उसे मसककली ही बुलाते थे। अभी वो अपनी नई नई सहेलियों से कॉलेज के मैदान में बैठी बातें ही कर रही थी की दुसरे विषय की क्लास के लिए घंटी बज उठी। सभी लोग उठे और बहुत उत्सकता से अपनी दूसरी क्लास की और चल दिए। शिल्पा भी उठी और चल दी। मगर चलते चलते उसकी एक किताब जो उसके हाथ में थी नीचे गिर गई। वो उस किताब को उठाने के लिए झुकी ही थी की उसके पीछे से से एक आवाज़ आई....."excuse me.... सुनिए....माफ़ कीजियेगा....आपका रुमाल रह गया है...आप जहाँ बैठी थी ना...वहीँ रह गया....".....शिल्पा ने कई ऐसे किसे सुने थे जहाँ कॉलेज के लड़के लड़कियों को पटाने के लिए उल्टे सीधे तरीके अपनाते थे....यह तरीका भी उन्ही में से एक था....शिल्पा को ऐसे लड़को से सख्त नफरत थी.....जो अपनी पढ़ाई छोड़ कर लड़कियों के पीछे पढ़े रहते है...

शिल्पा को गुस्सा आया और पीछे मूड कर बिना कुछ देखे समझे बोल पड़ी....."देखिये....यह रुमाल मेरा नही है....और यह बेकार के लड़की को पटाने के टिप्स आप कहीं और जा कर इनका प्रयाग करे...यहाँ दाल नही गलने वाली समझे...." बिना रुके बिना देखे बस शिल्पा बोलती चली गई..."अभी मेरी क्लास है..मुझे देर हो रही है वरना अच्छे से आपको बताती की यह रुमाल किसका है.."...शिल्पा गुस्से से तनतनाती हुई क्लास की तरफ़ चल दी।

क्लास में भी शिल्पा थोडी देर तक यही सोचती रही....की कॉलेज में आके न जाने लोगो को क्या हो जाता है...पढ़ाई करने की जगह बेकार में लड़की या लड़के पटाने में अपना समय बरबाद करते है....खैर थोडी देर बाद उसका ध्यान क्लास में हो रही पढ़ाई की ओर चला गया....

घंटी बजते ही क्लास ख़त्म हुई तो उसकी एक सहेली ने बोला उसे भूख लगी है तो वो भी कॉलेज की कैंटीन की ओर चल दी। कैंटीन में खाते खाते मुह साफ़ करने के लिए उसे अपना रुमाल याद आया.... उसने अपना रुमॉल हर जगह देखा। बैग में, जींस की जेब में, किताबो के बीच में......फिर उसकी सहेली बोली...कहीं क्लास में ही तो नही गिर गया.....तभी शिल्पा को याद आया.... नही वो तो मैदान में ही रह गया था....जल्दी से कैंटीन से निकल कर वो वहीँ पहुंची... मगर वहां अब उसे वो लड़का कहाँ मिलने वाला था....और फिर उसे अपनी दूसरी क्लास में भी जाना था...सो वो चली गई...

सारी कक्षाएं(classes) ख़त्म होने पे शिल्पा बस स्टैंड पे खड़ी थी...धीरे धीरे उसकी सारी सहेलियों को बस मिल गई....अब वो अकेली बस स्टैंड पे खड़ी थी.....थोडी देर बाद....फिर वही पहचानी आवाज़ पीछे से आई...."यह आप ही का रुमाल है न.."...मगर इस बार पीछे से ही एक हाथ उसके सामने आया जिसमें उसका रुमाल था..शिल्पा अपना रुमाल भी पहचान गई....और शर्मिदा भी हुई। धीरे से पीछे देखा तो वही लड़का खड़ा मुस्कुरा रहा था...

"i am sorry..मैंने बिना रुमाल को देखे न जाने आपसे क्या क्या कह दिया था..."..शिल्पा के मुह से सिर्फ यही निकला.. "its ok"...उस लड़के ने मुस्कुरा कर जवाब दिया...तभी शिल्पा की बस आ गई...

बस में चढ़ने के बाद उसने उस लड़के को भी उसी बस पे चढ़ते देखा...पहले तो शिल्पा को थोड़ा शक हुआ..कहीं वो जानबुझ कर उसके साथ इस बस में तो नही चढा....फिर उसने सोचा नही फिर वो एक गलती नही करेगी....पहले ही उसे ग़लत समझ कर एक गलती कर चुकी है......वो यह सब सोच रही थी की उस लड़के ने बस कंडक्टर से कहा "मुझे जुहू तक की टिकेट दे दो...."....शिल्पा की सारी ग़लत फ़हमी दूर हो गई।

फिर वो लड़का शिल्पा की ओर देख कर बोला "आपकी कहाँ तक की टिकेट कटवाऊ"......
शिल्पा : "जी नही मैं खूब टिकेट ले लुंगी..."

शिल्पा ने भी अपनी टिकेट ली और फिर बोली.."आप जुहू में रहते है...."...
लड़का बोला "जी हाँ मैं यहाँ अपने मौसा मासी के घर रहता हूँ....और उनका घर जुहू में ही है..."
शिल्पा : "मेरा घर तो बस जुहू के चार स्टाप बाद ही है...."
लड़का : "आप कॉलेज में नई है...."
शिल्पा : "जी...आज दूसरा दिन था...और आप"....
लड़का : "दूसरा दिन...... तो बताईये आपको हमारा कॉलेज पसंद आया या नही....जी मुझे तो तीन साल हो गए है.....बस दो साल बाद मैं डॉक्टर हो जाऊँगा यह सोच कर भी हसी आती है..."
शिल्पा: "हाँ.....कॉलेज तो बहुत अच्छा है....सभी lecturers अच्छे है.. तो आप मेरे सीनियर है..फिर तो मदद हो जायेगी....क्या specialisation ली है आपने"
लड़का: "मेरा interest तो eyes specialisation में है...और आपका.."
शिल्पा: "मैं child specialist बनना चाहती हूँ"

तभी दोनों को एक खाली सीट मिल गई.....और दोनों और ज्यादा अच्छे से बात करने लगे....शिल्पा को वो लड़का कॉलेज की कई खटी मीठी बातें बताने लगा....शिल्पा को भी खूब मज़ा आ रहा था सब सुनने में...

इतने में ही उस लड़के का स्टाप आ गया....तब उनको पता चला की बातों बातों में समय कैसे बीत गया पता ही नही चला......सीट से उठते ही उस लड़के ने पुछा.."लो बातों बातों में हम एक दुसरे का नाम पूछना तो भूल ही गए..मेरा नाम अनिल है और आपका.."

"शिल्पा...." शिल्पा ने जवाब दिया...तभी बस स्टाप पे रुकी और...वो लड़का अनिल बस से उतर गया। बाकी के सफर में भी शिल्पा उसकी की खटी मीठी बातें याद आती रही.....वो बहुत खुश थी....कॉलेज के किस्से सुन कर बहुत excitement feel कर रही थी।

"शिल्पा....ओ मेरी मसककली...." एक आवाज़ आई तो शिल्पा ने मुह उठा कर देखा..तो वो उसकी स्कूल की सहेली थी....किरन....."अरे किरन तू....तू इस बस में कैसे...".....

"हाँ मैं....और कोन....तुझे मसककली बुलाएगा... मैं तो बस अभी एक कॉलेज में अपनी फीस जमा कर के आ रही हूँ....तू बता तेरा तो admission भी हो गया है मैंने सुना है बहुत अच्छा कॉलेज है....और तेरे क्षितिज भिया की भी शादी होने वाली है"

"हाँ तुने ठीक ही सुना है...बस कॉलेज से ही आया रही हूँ और क्षितिज भइया की भी शादी 8 महीने बाद है...और सगाई दो महीने बाद..तुझे आना है....तुझे कार्ड देने आउंगी मैं तेरे घर पे...." शिल्पा बोली।

"चल फिर तेरे भइया की शादी के बाद तेरी बारी आ जायेगी.... कॉलेज में कोई लड़का देख लेना....तेरी लाइफ तो सेट हो गई कुड़िये.....मसककली.... वो क्या बोलते थे हम तुझे....हाँ.....

मैं एक मसककली (कबूतरी) हूँ बैठने को एक मुंडेर ढूंढती हूँ..
बस जो मेरे हर वक्त साथ रहे एक ऐसा कबूतर ढूंढती हूँ..

याद रखना इसे...और जल्दी से एक लड़का पता लेना....hehehehehe..."

शिल्पा: "क्या किरन तू फिर शुरू हो गई...स्कूल में भी तू ऐसे ही करती थी...एक मौका नही छोड़ती तू ना....न जाने कब सुधरेगी....तू बता तेरा admission कहाँ हुआ है।"
शिल्पा के स्टाप आने तक वो लोग बातें करते रहे...फिर शिल्पा घर भी आ गई....पर उसके चेहरे से वो मुस्कान अभी तक थी और अपने admission और क्षितिज भइया की सगाई और शादी को ले के तो पहले से ही खुश थी और आज उसका दिन भी तो बहुत अच्छा जो गया था.... पर सच में वो उस शेर को कभी नही भूल पायेगी..जो अक्सर स्कूल में लोग उसे सुनते थे उसे छेड़ने के लिए.....

मैं एक मसककली (कबूतरी) हूँ बैठने को एक मुंडेर ढूंढती हूँ.....
बस जो मेरे हर वक्त साथ रहे एक ऐसा कबूतर ढूंढती हूँ.....

to be continue....
~'~hn~'~

Note : This story is only a Fiction, not real story, It is only for inspirational.

4 comments:

Irfanuddin said...

Aisa aksar hota hai.. Ladkiyaan ache gesture ko bhi ghalat samahti hain

hahaaaa कबूतर ढूंढती हूँ..... in our days Girls used to say them "BAKRAA"

Waiting for the upcoming part....

Hema Nimbekar said...

@IRFANUDDIN
Girls still use "BAKRAA" for Boys..hehhehehe..

Anonymous said...

when i saw in my blogger dashboard that u have written all the 5 parts i was so happy.i opened the story as quickly as i cud.but when i saw those pages doesnt exist then felt a bit sad. u write very nice. ab twist padne k baad story k climax ka wait karna thoda mushkil hai but i shall. written beautifully

Hema Nimbekar said...

@some unspoken words

thank you anu dear..yeah they all(parts) are typed..just will post one part everyday....you will get them posted in morning around 12...all are scheduled...

How u find my blog??

लिखिए अपनी भाषा में

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