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Friday, January 27, 2012

ज़रा गौर फ़रमाए (5)

इतना दर्द कहाँ से लाती हूँ
सोचो की सहने की हिम्मत कहाँ से लाती हूँ ।
यह दर्द तो सहन हो भी जाता है मगर
उनकी बेरुखी को पीने का जिगर कहाँ से लाती हूँ ।।
~'~hn~'~

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दिल से दिल को राह होती है 
तेरे दिल की हर आह से मेरी बात होती है ।
दिल की बातें तो अब सरे आम होती है
दिल के बाज़ार में मेरी आहें यूँ ही नीलाम होती है ।।
~'~hn~'~

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चल यार यहाँ मुशायेरा लगा लेते है
शेरो शायरी से दिल नहीं भरता अब
अपनी आप बीती सुना देते है
तू एक शेर लिख मैं शायरी लिख देती हूँ
तू एक इशारा कर मैं दर्द-ए-दिल लिख देती हूँ
 ~'~hn~'~

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मुद्दत हो गयी मेले देखे
अब तो खुद से ही हम बोर हो जाते हैं ।
काफिले गुज़र जाते है नज़दीक से तो भी
अकेले खड़े निहारते हम रह जाते हैं ।।
रह गुज़र कोई भटकता सा दो आंसूं साथ बहा लेता है ।
वरना हम तो यादों की लाश पे ही अकेले मातम बना लेते हैं ।।
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मेरा दिल, रातो की नींद, दिन का चैन,
सब कुछ तो ले ही लिया है
पर तुमको प्यार करने का हक़ ना लो ।
दिल को तोड़ कर वापस जोड़ नहीं सकते अगर
तो कम से कम हमें टूटके मुहब्बत तो करने दो ।।
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इस बेरहम तन्हाई का डर और कम्भख्त जुदाई का दर्द
तुम क्या जानो बेदर्दी ।
पहली बार तो खफा नहीं हुए थे हम
तुमने ही मानाने की रसम बदल दी ।।
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यूँ दूर मत रहो कुछ करीब आने की पहल डालो ।
दूर रहने की बहुत बुरी आदत अपनी बदल डालो ।।
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कांच के टुकड़ों पर भरोसा तो कर लिया
कभी अपनी उँगलियों पे भरोसा कर लिया होता ।
हम तो चलो गेर ही सही
पर कभी अपनों का कहा भी मान लिया होता ।।
~'~hn~'~

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