जज्बातों के लाख समंदर है … कश्ती कोई नहीं। …
अब तो या हम डूब जायेंगे या फिर तैरना आ जायेगा हमें ....
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बस चल रही है ज़िन्दगी कुछ युही बेहिसाब सी..
कभी खुश मिज़ाज़ है तो कभी तबियत है नासाज़ सी। …
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कोई तो है जो हमको याद करता है
बेहिसाब न सही थोडा सा लिहाज़ रखता है..
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जिस साये को शरारत में साथ पाया
जिस साये को इब्बादत में साथ पाया
वो कोई और नहीं बस दिल का ही फितूर था
वो कुछ और नहीं बस जवानी का जूनून था
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दिल चाहता है बिखरे मोती समेत लूं
दिल चाहता है फिर से माला पिरो लूं
पर खोये मोती कहाँ से लाऊं
पर माला कि डोरी कहाँ से लाऊं
क्या करू कहाँ जाऊं
इस दिल को कैसे समझाऊं
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दर्द को रम बना के पियेगा अगर
तो सुबह सरदर्द बन के सताएगा
बात तो तब है जब तुम्हे खुश देख के
दर्द को दर्द हो कि इसे दर्द क्यों नहीं होता
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