यूँ तो मेरे अस्तित्व की कहानी
है बहुत बरसो बरस पुरानी
जुड़ी है मुझसे बहुत सी कहानी
कुछ नयी सी कुछ है पुरानी
है 100 साल बात यह पुरानी
मुग़ल थे गए अंग्रेजो की थी गुलामी
था आज का ही दिन मगर रूमानी
बनाया गया मुझे भारतवर्ष की राजधानी
बहुत लम्बा सफ़र किया मैंने तेय
बहुत से राजाओं के राज आये और गए
मेरा कोई अपना नहीं यहाँ पर
बाहर से लोग आते ही मुझे अपनाते गए
सबको मैंने अपना समझा
माँ जैसे ही पुचकारा सहेजा
कुछ न कुछ वो देते गए मुझे
दिल भी अपना दे गए मुझे
हूँ गवाह मैं गुलामी की जंजीरों की
नेताजी के दिए "दिल्ली चलो" के नारों की
गाँधी जी की "भारत छोड़ो" ललकार की
साक्षी हूँ मैं संविधान के पत्राचार की
बटवारे के दर्द लिए
आये बहुत से लोग यहाँ
दी मैंने पनाह उन्हें
अपनाया प्यार से यहाँ
पुराने किले और लाल किले के बाद
देखे मैंने कई घर हवेली आबाद
connaught place की जनम देखा
देखी उसकी जवानी नाबाद
रायेसेना पर बना भवन पारलौकिक
सत्ता की उलट पलट राजनितिक
होती है देश भर की नीतियाँ तेय यहाँ
संसद में होती विस्तार से चर्चा जहाँ
गाँधी की हत्या नेहरु की भारत एक खोज
फिर इंद्रा का कड़क नेतृत्व और सटीक फौज
देश को समर्पित राजेंद्र प्रसाद जी की सोच
राजीव गाँधी की युवा के संग नवभारत की सोच
टांगों को दौड़ते पाया अपनी गलियों में
ट्राम, मेट्रो की भी शान देखी गलियों में
टीवी, रेडियो का दौर है देखा
अब कंप्यूटर भी लगे सरीखा
देखे मैंने बहुत से चांदनी चौक के मेले
छोटी छोटी गलियों में सामान बेचते ठेले
बाजारों, कटरों में भी भीड़ उमड़ती
कुछ आनो में ही दुनिया सिमटती
चटकारों की दुनिया बाज़ारों की दुनिया
रंगबिरंगी दुनिया त्योहारों की दुनिया
सबसे कमाऊ दुनिया सबसे खर्चीली दुनिया
द्हेशत की दुनिया विस्फोटों की दुनिया
मेरी हर बात है निराली
यहाँ के लोग है बहुत कमाली
दिल दे के भी दिल है जीत लेते
सब कुछ खो के भी प्यार पा लेतेआज बहुत कुछ है बदला सा अलग तलख
सहजता है गायब वही सजीला जो है अलग तलख
यहाँ इंसान हो गया बिंदास अपनापन खो कर भी
है सामाजिक जागृत समाज से दूर हो कर भी
जगह नहीं रहने को अब फिर खालीपन सा है
दिल्ली में रह कर भी कोई नहीं दिल्ली वालो सा है
आज कोई महिला सुरक्षित नहीं यहाँ है
हर तरफ आतंक का हाहाकार फैला यहाँ है
है बहुत सी दुनिया सिमटी मुझमें
है बहुत से यादो के दौर मेरे मन में
बीतें ये 100 साल चुटकियों से क्षण में
बताऊँ कैसे मैं आप बीती बस कुछ शब्दों में
~'~hn~'~