"बेरहम हैं वो या फिर बेफिक्र हैं...
कितना भी बताऊ उनको दिल ए हाल वो हैं की सुनते ही नहीं"
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"कहने को मलहम भी वो ही हैं इस दिल की चोट का..
पर दर्द को बढ़ाते भी वो ही है और चोट देते भी वो ही हैं"
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"उनको रोज़ हमसे लड़ने की आदत हैं..
या हमें अपना रूठना और उनका मनाना पसंद है"
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"आपका रूठ जाने का नहीं..
हमें मनाना नहीं आता इसका गम है..
आपके चुप रहने का नहीं..
हमें बातें बनाना नहीं आता इसका गम है..
आपकी नापसंद होने का नहीं..
हमारी किस्मत में आपका न होने का गम है...
आपका हमारी ज़िन्दगी में न आने का नहीं..
हमारी यादों में रोज़ परछाई बनके आपके आने का गम है.."
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"हमें कहाँ मिली फुसरत उनके हाथो से दिल टूटने का मातम मनाने की...
हम तो मशरूफ थे उनके घर बस जाने के जश्न में...."
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"शरारत है भरी उनकी नज़रों में और हम भी उन्हें बेइंतहा निहारते हैं..
वो टुकुर टुकुर हमें घूरते हैं और चोरी चोरी नज़रों से हम भी उनकी नज़र उतारते हैं..."
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