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Monday, April 1, 2013

प्यालों का गुलाम

माँगा था जहर तुझसे ए दोस्त
तूने मुझे पकड़ा एक जाम दिया ।
अच्छा था किस्सा एक बार खत्म हो जाता मगर 
तूने मुझे बना प्यालों का गुलाम दिया ।।

क्यूँ इतना याद करते है मुझे ये प्याले 
बार बार जो बुलाने का पैगाम दिया ।
एक बार का ही किस्सा तमाम था मगर 
अब हर प्याले ने मौत सा अंजाम दिया ।।

पल पल मर कर भी जिंदा हूँ
जैसे मुझे हर घूंट ने जीवनदान दिया ।
झूमती नहीं है राहें झूमती नहीं है मंजिलें मगर 
झूमते मेरे कदमों ने ही मुझे लहूलुहान किया ।।

अकेला था मैं सहारे की न थी तलाश 
रुष्ट था ज़िन्दगी से उसके खिलाफ मैंने बयान दिया ।
तिल टिल होती तेरी बर्बादी देखी मैंने मगर 
तुझको न समझाया मैंने क्यूँ न इस पर ध्यान दिया ।।

अब बर्बाद हो गए हम दोनों ही 
सारा तन बदन इस मीठे जहर की आग से खाक किया । 
अब खून में रच बस गया है मगर 
फितरत से ये है मजबूर इतना इसने हमें नापाक किया ।।
~'~hn~'~
(Request to all drinker please don't force someone or your new friend to accompany you)

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